
श्रीमहालक्ष्मी-पूजन, इतिहास एवं पूजन विधि।
भगवती महा Lakshmi चल एवम् अचल, दृश्य एवम् अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवम् निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं। भगवान श्रीगणेश सिद्धि-बुद्धि के एवम् शुभ और लाभ के स्वामी तथा सभी अमङ्गलों एवं विघ्नों के नाशक हैं यह सद्बुद्धि प्रदान करने वाले हैं अतः इनके समवेत पूजन से सभी कल्याण-मंगल एवं आनंद प्राप्त होते हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण अमावस्या को भगवती श्री महा Lakshmi एवं भगवान गणेश की नूतन प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा पूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। पूजन के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेश जी के दाहिने भाग में माता महा Lakshmi को स्थापित करना चाहिए पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजन स्थान को भी पवित्र कर लेना चाहिए और स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा भक्ति पूर्वक सायंकाल में इनका पूजन करना चाहिए।
मूर्ति में श्री महा Lakshmi जी के पास ही किसी थैली में या पवित्र पात्र में केसर युक्त चंदन से अष्टदल कमल अथवा स्वस्तिक बनाकर उस पर द्रव्य लक्ष्मी रुपयों को स्थापित करके एक साथ ही दोनों की पूजा करनी चाहिए।पूजन सामग्री को यथा स्थान रखने सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री धारण, मार्जन, प्राणायाम कर पूजन प्रारंभ करना चाहिए।
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Lakshmi पूजन का इतिहास:-
माँ श्री महा Lakshmi हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वह भगवान विष्णु की पत्नी हैं। पार्वती और सरस्वती के साथ, वह त्रिदेवियाँ में से एक है। और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती
महा Lakshmi का जन्म समुद्र मंथन के दिन से ही माना जाता है। समुद्र मंथन से अप्सराओं की उत्पत्ति के पश्चात लक्ष्मी जी पैदा हुई इनकी सुंदरता के कारण सुर और असुर सभी इनको प्राप्त करने की कामना करने लगे। इंद्र ने इनको रत्न जड़ित आसन दिया, नदियां सोने के घरों में इनके स्नान के लिए जलाई और ऋषि यों ने इनका विधिपूर्वक अभिषेक एवं पूजन किया। वाद्य बजाने लगे वह अप्सराएं नृत्य करने लगी। गंधर्व अप्सरा ओके नृत्य को देखकर मेघ अपने गर्जन तर्जन के द्वारा उनकी संगत करने लगे।
दिग्गजों से उसका स्नान कराने लगे। सागर ने उसे पीले वस्त्र दिए। वरुण ने वैजयंती माला दी और विश्वकर्मा जी ने विविध प्रकार के आभूषणों से विभूषित किया। इस प्रकार अघोषित श्री लक्ष्मी माता ने स्वयं कमल की का माला लेकर हास्य पूर्वक विष्णु के गले में जयमाला डाल दी। अफसरों ने मंगल गान किया वह सभी देवताओं ने Lakshmi नारायण की स्तुति की। जब श्री कृष्ण ने योगमाया का आश्रय लेकर रासलीला का आयोजन किया तो उस समय उनके वाम अंग से एक देवी का जन्म हुआ जो अत्यंत सुंदर थी।
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ईश्वर की इच्छा से उसी समय उसने दो रूप धारण किए। यह दोनों ही रूप राधिका और महा Lakshmi के हैं। देवराज इंद्र के घर में स्वर्ग लक्ष्मी कामा पाताल नाग लक्ष्मी कमा राज ग्रहों में राजलक्ष्मी कोमा अपने अवतारों के द्वारा सभी कुलपति स्त्रियों में गृह लक्ष्मी कमरों में श्री चंद्र और सूर्य मंडल में शोभा, आभूषण, राजा, रानी अन्न वस्त्र शुभ स्थान देवी-देवताओं की प्रतिमा मंगल कलश मणि मोती माला हीरा दूध चंदन पेड़ की शाखा ने में गीत यादी दिव्य पदार्थों से शोभा रूप विराजमान थी।
सबसे पहले नारायण ने बैकुंठ में इनकी पूजा की। दूसरी बार ब्रह्मा ने कोमा तीसरी बार शिव जी ने चौथी बार सागर मंथन के समय पुनः विष्णु ने फिर मनु ने और पाताल में नागों ने कमा भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी से लेकर अश्विन तक ब्रह्मा ने इन स्किन की पूजा की थी पूर्णविराम शेष देवताओं ने चैत्र शुक्ल और पौष शुक्ल अष्टमी के दिन इनकी पूजा की थी पूर्णविराम इसके अतिरिक्त शरद ऋतु में दीपावली के दिन पोस्ट संक्रांति के दिन भी देवताओं ने इनकी पूजा की।
इंद्र मनु केदार नल नील सबल ध्रुव उत्तानपाद बलि कश्यप दक्ष प्रजापति कर्दम प्रियव्रत चंद्र कुबेर वायु एवं अग्नि और वरुण में सर्व सिद्ध प्रदायिनी महा Lakshmi का उपयुक्त मुख्य पर्व दिनों में पूजन करते थे। मार्कंडेय पुराण में महा Lakshmi की उपासना के लिए दीपावली की रात्रि का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है।
श्री महालक्ष्मी जी की पूजन विधि:- Lakshmi पूजा का इतिहास एवं पूजन विधि।
श्री महा Lakshmi देवी का पूजन दीपावली के दिन उत्सव के साथ पवित्र पर्व के रूप में मनाया जाता है। ब्राम्हण कोमा क्षेत्रीय कोमा वैश्य और शूद्र सभी हर्षोल्लास के साथ इस पर्व को मनाते हैं। सभी सदस्य अपने अपने ग्रहों में सफेदी आदि करवाकर विभिन्न प्रकार के रंगों क्षेत्रों पुष्प मालाओं आदि से सजाते हैं। अनेक मतभेद होते हुए भी अमीर गरीब सभी लक्ष्मी पूजन करते हैं। यह त्यौहार वास्तव में त्रयोदशी से आरंभ हो जाता है, इसे धनतेरस पर्व भी कहते हैं।
इस दिन एक व्यक्ति कोई ना कोई नया बर्तन खरीद कर घर मिलाते हैं। इस दिन घर में नवीन बर्तन लाना शुभ माना जाता है विराम कहीं कहीं दीप भी जलाए जाते हैं। चतुर्दशी के दिन जिसे छोटी दिवाली कहां जाता है इस दिन भी देव स्थानों पर दीप प्रज्वलित किए जाते हैं जिसके बाद अमावस्या के दिन दीप मालिक उत्सव मनाया जाता है दीपावली के उत्सव को पवित्र और शुद्ध विचारों से युक्त होकर मनाना चाहिए। यदि इस दिन उपवास कर सके तो अति उत्तम होगा।
साईं काल के समय देव पूजन तथा श्री महालक्ष्मी भगवती देवी का पूजन करना चाहिए विराम कम से कम 5 डीपी के तथा अन्य सरसों के तेल से प्रचलित करें। जिस स्थान पर लक्ष्मी पूजन हो वहां पर घी का दीपक जला में। घर में जिस स्थान पर रुपया पैसा अथवा आभूषण आदि रखे हैं वहां घी का दीपक जलाना चाहिए इस प्रकार यदि दुकान हो तो उस स्थान अथवा पेटी बक्से के समीप जहां पर की गला रखा जाता हो कमा घी का दीपक जलाना चाहिए, एक दीपक गंगा जी के नाम का भी जलाना चाहिए इसके अतिरिक्त जितने भी घर में देवस्थान हो उस पर घी का दीपक जलाना चाहिए। विराम घर के शेष सभी भीतरी तथा बाहरी भागों में तेल के दीपक जला ले ।
Lakshmi पूजा का इतिहास एवं पूजन विधि।
घर के दरवाजों खिड़कियों पर जलतेदीप की कतारें अत्यंत शोभित होती हैं विराम चौराहे पर भी दीपक रखना चाहिए। दीप मालिका से निर्भर होकर निश्चित स्थान पर चौक पूर कर पवित्र विधि स्थापित करें। तत्पश्चात चावल तथा कुमकुम से अष्टदल कमल बनाकर उस पर भगवती श्री महालक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित करें। फिर विधि अनुसार संकल्प करके देव पूजन वह श्री महा Lakshmi का पूजन करें।
दीप मालिका के उत्सव पर चावल की खीर कमांड की मिठाई व अन्य विविध प्रकार के पकवानों से लक्ष्मी जी का भोग लगा में। निवास के सभी कमरे सुगंधित धूप अगरबत्ती आदि से सुभाषित करनी चाहिए। पूजन के पश्चात निवृत्त होकर या चुका वह बच्चों में मिठाई बांटे विराम तत्पश्चात अपने घर में काम करने वाले सेवकों को पुरस्कार व मिष्ठान का वितरण करके स्वयं फलाहार अथवा अन्न जल ग्रहण करें।
व्यवसाई व्यक्तियों को चाहिए कि वह अपने व्यवसाय केंद्र अथवा दुकान पर जाकर दीपोत्सव महा Lakshmi पूजन सहित मनावे दीपावली पर यज्ञ की भी परिपाटी है पर विराम दुकानदारों को चाहिए कि मैं लक्ष्मी पूजन के समय अपने बही खातों वह कलम दवात आदि काफी पूजन करें। सिंदूर से घर वह दुकान में मांगलिक शब्द लिखें पुणिराम संपन्न व्यक्ति पूजन के पश्चात अपने कर्मचारियों को लाभांश अथवा पुरस्कार स्वरूप मुद्रा, वस्तु अथवा बर्तन मिष्ठान भी देने चाहिए।
Lakshmi पूजा पावन पर्व पर जुआ खेलना नीच कर्म ही नहीं महापाप भी है।
समय के साथ कुछ कुरीतियां भी महालक्ष्मी पूजन के साथ जुड़ गई हैं जिसमें कुछ मूर्ख और निम्न विचार के व्यक्ति इस अवसर पर युवा भी खेलते हैं। वास्तव में यह ना तो शास्त्रोक्त कृत्य ही है और ना किसी भी दृष्टि से इसे शुभ माना जा सकता है। इसलिए ऐसे पावन पर्व पर जुआ खेलना नीच कर्म ही नहीं महापाप भी है ऐसे व्यक्तियों के घर में श्री महा Lakshmi देवी कभी निवास नहीं करती हैं।
Lakshmi पूजन में उपयोग अवश्य करना चाहिए।
1. गुलाब – कमल – फूलमाला – खुला फूल।
2 . फल में श्रीफल सीताफल – बेर – अनार – सिंघाड़े।
3 . केवड़ा – गुलाब – चंदन के इत्र।
4 . चावल
5 . मिठाई या हलवे का नैवेद्य।
6 . गाय का घी – मूंगफली – तिल्ली का तेल।
7 . स्वर्ण आभूषण – रत्न।
8 . पंचामृत, गंगाजल, सिंदूर, भोजपत्र
9 . कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र,
10. गाय का गोबर।
11. ऊन के आसन।
(1) लक्ष्मी
(2) गणेश,
(3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक
, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण
(6) नवग्रह
(7) षोडशमातृकाएं
(8) कोई प्रतीक
(9) बहीखाता
(10) कलम और दवात
(11) नकदी की संदूकची
(12) थालियां, 1, 2, 3,
(13) जल का पात्र
धूप बत्ती (अगरबत्ती), कपू र, केसर, चंदन, यज्ञोपवीत 5, कुंकु, चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, नाड़ा, रुई, रोली, सुपारी, पान के पत्ते, पुष्पमाला, कमलगट्टे-, तुलसीमाला, धनिया खड़ा, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, कुशा व दूर्वा, पंच मेवा, गंगाजल, शहद (मधु), शकर, घृत (शुद्ध घी), दही, दूध, ऋतुफल, नैवेद्य या मिष्ठान्न , (पेड़ा, मालपुए इत्यादि), इलायची (छोटी), लौंग मौली, इत्र की शीशी, सिंहासन (चौकी, आसन), पंच पल्लव, (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते), पंचामृत, तुलसी दल, केले के पत्ते , (यदि उपलब्ध हों तो खंभे सहित), औषधि, (जटामॉसी, शिलाजीत आदि), श्रीकृष्ण का पाना (अथवा मूर्ति) , गणेशजी की मूर्ति, अम्बिका की मूर्ति, श्रीकृष्ण को अर्पित करने हेतु वस्त्र, गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र, जल कलश (तांबे या मिट्टी का), सफेद कपड़ा (आधा मीटर), लाल कपड़ा (आधा मीटर), पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार), दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, बन्दनवार, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा), श्रीफल (नारियल), धान्य (चावल, गेहूँ), पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल), एक नई थैली में हल्दी की गाँठ, खड़ा धनिया व दूर्वा आदि, अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र।
अत: इनका लक्ष्मी पूजन में उपयोग अवश्य करना चाहिए।
Lakshmi पूजन की तैयारी कैसे करे।
सबसे पहले चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां रखें उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे।
लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें।
पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें।
कलश को Lakshmi जी के पास चावलों पर रखें।
नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।
दो बड़े दीपक रखें। एक घी का, दूसरा तेल का। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। एक दीपक गणेशजी के पास रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं।
कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं।
गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी।
सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें।
थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।
अब विधि-विधान से पूजन करें।
इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
श्री महालक्ष्मी जी का पूजन प्रारंभ:-Lakshmi
पूजन प्रारंभ करने से पूर्व सभी देवी देवताओं को आवाहित करना चाहिए तभी पूजन प्रारंभ करना चाहिए।
इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
ॐ यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः
मंत्र – ॐ ह्रीं आधार शक्तये नम: | ॐ कं कम्ब्लासनाय नम: |
ॐ विं विमलासनाय नम: | ॐ पं परमसुखासनाय नम: |
ॐ कूर्माय नम: | ॐ अनंताय नम: |
शिखा बंधन –
निम्न मंत्र से यजमान अपनी शिखा को बाँध लें |
ॐ चिद्रुपिणि महामाये , दिव्य तेज: समन्विते |
तिष्ठ देवी शिखा मध्ये , तेजो वृद्धिं कुरुष्व में ||
आचमन :
दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें-
ॐ केशवाय नमः स्वाहा,
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा,
ॐ माधवाय नमः स्वाहा ।
यह बोलकर हाथ धो लें-
ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि
पवित्री धारण –
पवित्री धारण में यजमान अपने अनामिका ऊंगली में कुशा की बनी हुई पवित्री का धारण करे, यदि कुश उपलब्ध नहीं हो तो स्वर्ण मुद्रिका धारण कर सकते हैं |
‘पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व: प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण
सूर्यस्य रश्मिभिः |तस्य ते पवित्र पते पवित्र पूतस्य यत्काम: पुनेतच्छकेयम।
दीपक :
दीपक प्रज्वलित करें (एवं हाथ धोकर) दीपक पर पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
दीप देवि महादेवि शुभं भवतु मे सदा ।
यावत्पूजा-समाप्तिः स्यातावत् प्रज्वल सुस्थिराः ॥
अग्नि र्ज्योति र्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्यो ज्योति र्ज्योति:
सूर्य: स्वाहा | अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्यो वर्चो
ज्योतिर्वर्चः स्वाहा || ज्योति: सूर्य: सूर्यो ज्योति: स्वाहा ||
दीपस्थ देवतायै नमः सर्वो पचारार्थे गंधाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि | पूजयामि | नमस्करोमि |
भो दीप देवरुपस्त्वम कर्म साक्षी हविघ्नकृत |
यावत् कर्म समाप्ति: स्यात् तावत्वम सुस्थिरो भव ||
(पूजन कर प्रणाम करें)
स्वस्ति-वाचन :
निम्न मंगल मंत्र बोलें-
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरितासउद्भिदः।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे॥
दवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवाना ग्वँग् रातिरभि नो निवर्तताम्।
देवाना ग्वँग् सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तुजीवसे॥
तान् पूर्वया निविदाहूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम्।
अर्यमणं वरुण ग्वँग् सोममश्विना शृणुतंधिष्ण्या युवम्॥
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमसे हूसहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्वेवेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः।
अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह॥
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं फश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरै रङ्गैस्तुष्टुवा ग्वँग् सस्तनू भिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता म पिता स पुत्रः।
विश्वे देवा अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥
द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ग्वँग् शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ग्वँग् शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शन्नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥ सुशान्तिर्भवतु॥”
अब भगवान गणेश-अंबिका का आह्वान करें-
ॐ गणानां त्वा गणपति(गुँ) हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति(गुँ)
हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति(गुँ) हवामहे व्वसो मम ।
आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ।
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ।
ससस्त्यश्चकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि पूजयामि च ।
(श्री गणेश व सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ।)
देवतास्मरण :
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नम: । इष्टदेवताभ्यो नम: । कुलदेवताभ्यो नम: । ग्रामदेवताभ्यो नम: । स्थानदेवताभ्यो नम: । वास्तुदेवताभ्यो नम: । आदित्यादिनवग्रहदेवताभ्यो नम:। मातापितृभ्यां नमः । श्री लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमो नमः । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमो नमः ।
निर्विघ्नमस्तु || सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः । लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिप: ॥ धूम्रदेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजाननः । द्वादशैतानि नानानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥ विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥ शुल्कांबरधरं देवं शशिवर्ण चतुर्भुजम । प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वविघ्नोपशान्तये ॥ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमास्तु ते ॥ सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममंगलम । येषा हृदिस्थो भववान मंगलायतनम हरिः ॥ तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चंद्रबलं तदेव । विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीप्ते तेऽङघ्रियुगं स्मरामि ॥ लाभस्तेषां जयस्तेषा कुतस्तेषां पराजयः । येषामिंदीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः । विनायकं गुरूं भानुं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान । सरस्वतीं प्रणम्यादौ सर्वकार्यार्थसिद्धये ॥ अभीप्सितार्थसिद्धार्थ पूजितो यः सुरासुरैः । सर्वविघ्नहरस्तस्मै श्रीगणाधिपतये नमः ॥ सर्वेष्वारब्धकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः । देवा दिशंतु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनाः ॥
(श्री गणेश व सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ।)
अथ कलश पूजा:-
कलशस्य मुखे विष्णु,कण्ठे रुद्र समाश्रितः | मूले तत्र स्थितो ब्राह्मो मध्ये मातृगणास्मृतः || कुक्षौ तु सागरासर्वे सप्तद्विपा वसुन्धरा | ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथवर्णः || अन्गैश्चसहिता सर्वे कलशाम्बुसमाश्रिताः | अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा || आयान्तु देव पूजार्थं दुरितक्षयकारकाः | सर्वे समुद्राः सारिताः तीर्थानि जलदानदाः || गङ्गेच यमुने चैव गोदावरी सरस्वती | नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेय्स्मिन्सिन्सन्निधिंकुरु || गंगा दि सर्वतीर्थेभ्यो नमः || कलश पूजां समर्पयामि.||
शंखपूजा :-
शङ्खादौ चन्द्रदैवत्यं वारुणंचादि दैवतं | पृष्ठे प्रजापति विद्यात् अग्रे गङ्गा सरस्वती|
त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया | शङ्खे तिष्ठन्ति विपेन्द्र तस्माद शङ्खं प्रपूजयेत् | त्वं पूरा सागरोत्पन्नः विष्णुना विधृतः करे || निर्मितः सर्वदेवैस्तु पाञ्चजन्य नमोस्तुते |
पवनाय नमः | पाञ्चजन्याय नमः | पद्मगर्भाय नमः | अम्बुराजाय नमः | कंबुराजाय नमः | धवलाय नमः |
ॐ पाञ्चजन्याय विद्महे पद्मगर्भाय धीमहि तन्नः शङ्खः प्रचोदयात् ||
शंखदेवताभ्यो नम: । सर्वोपचारार्थे गंधपुष्पं समर्पयामि ।।
घंटापूजा :-
आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम् । कुर्वे घंटारवं तत्र देवताह्वानलक्षणम् ।।
घंटायै नम: । सर्वोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।।
संकल्प विधि:-
अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर श्री महालक्ष्मी आदि के पूजन का संकल्प करें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य
विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयेपरार्धे
श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलि-
युगे कलि प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखंडे भारतवर्ष
आर्य्यावर्तेक देशांतर्गत (*अमुक) क्षैत्रे/नगरे विजय नाम संवत्सरे, दक्षिणायने शरद त्र्मृतो
महामांगल्यप्रद मासोत्तमे कार्तिकमासे शुभ कृष्णपक्षे
अमावस्यां अमुक वासरे हस्तपरं अमुक नक्षत्रे कन्यापरं तुलाराशि स्थिते चंद्रे तुला राशि
स्थिते सूर्य्ये वृष राशि स्थिते
देवगुरौ शैषेषु गृहेषु यथा यथा राशि स्थितेषु सत्सु एवं
गृहगुणगण विशेषण विशिष्ठायां शुभ पुण्यतिथौ
(*अमुक) गौत्रः (*अमुक नाम शर्मा/ वर्मा/ गुप्तो दासोऽहम् अहं) ममअस्मिन प्रचलित व्यापारे आयुरारोग्यैश्वर्याधभिवृद्धयर्थम् व्यापारे उत्तरोत्तरलाभार्थम् च दीपावली- महोत्सवे गणेश-अम्बिका-श्रीमहालक्ष्मी, महासरस्वती- महाकाली- लेखनी- मषीपात्र- कुबेरादि देवानाम् पूजनम् च करिष्ये ।
: यह संकल्प वाक्य पढ़कर जल अक्षत आदि गौरी गणेश के समीप छोड़ दें पूजन से पूर्व गौरी गणेश की निम्न रीति से प्राण प्रतिष्ठा कर लें-
प्रतिष्ठा:- बाएं हाथ में अच्छा तो लेकर निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन क्षेत्रों को गौरी गणेश पर छोड़ता जाएं-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ(गुँ)
समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयंतामो(गुँ) प्रतिष्ठ ॥
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्ये प्राणाः क्षरन्तु च ।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥
गणेश-अम्बिके! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम् ।
प्रतिष्ठापूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि
गणेशाम्बिकाभ्यां नमः ।
(आसन के लिए अक्षत समर्पित करें।)
अब हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलकर जल अर्पित करें-
ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् ।
एतानि पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनराचमनीयानि
समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः ।
(जल चढ़ा दें।)
प्रधान पूजा:-
प्रधान पूजा में गणेशजी तथा भगवती महालक्ष्मी की नूतन प्रतिमाओं का पूजन करें लक्ष्मी गणेश की नूतन प्रतिमा तथा द्रव्य लक्ष्मी की ओम नमो भगवते तथा ओम कश्यप राणा त्यागी मंत्र पढ़कर पूर्वक तृतीय से प्राण प्रतिष्ठा कर ले ध्यान हाथ में फूल लेकर निम्न मंत्र से गणेश जी एवं भगवती महालक्ष्मी जी का ध्यान करें
गजाननं भूत गणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्,
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
स्नान :
मन्दाकिन्याः समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः ।
स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, स्नानं समर्पयामि ।
(स्नानीय जल अर्पित करें।)
स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
(‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ बोलकर आचमन हेतु जल दें।)
दुग्ध स्नान :
कामधेनुसमुत्पन्नां सर्वेषां जीवनं परम् ।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् ॥
ॐ पयः पृथिव्यां पय औषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।
पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पयः स्नानं समर्पयामि । पयः स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(कच्चे दूध से स्नान कराएँ, पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)
दधिस्नान :
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।
दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः
सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयू(गुँ)षि तारिषत् ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दधिस्नानं समर्पयामि। दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(दधि से स्नान कराएँ, फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)
घृत स्नान :
नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् ।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ घृतं घृतपावनः पिबत वसां वसापावनः
पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा ।
दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, घृतस्नानं समर्पयामि । घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(घृत स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)
मधु स्नान :
तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः ।
माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव(गुँ) रजः ।
मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥
मधुमान्ना वनस्पतिर्मधुमाँ(गुँ) अस्तु सूर्यः ।
माध्वीर्गावो भवंतु नः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मधुस्नानं समर्पयामि । मधुस्नानन्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(शहद स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)
शर्करा स्नान :
इक्षुसारसमुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका ।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ अपा(गुं), रसमुद्वयस(गुं) सूर्ये सन्त(गुं) समाहित्म ।
अपा(गुं) रसस्य यो रसस्तं वो
गृह्याम्युत्तममुपयामगृहीतो-सीन्द्राय त्वा जुष्टं
गुह्ढाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करा स्नानान्ते पुनः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।
(शर्करा स्नान कराकर जल से स्नान कराएँ।)
पंचामृत स्नान :
(दूध, दही, घी, शकर एवं शहद मिलाकर पंचामृत बनाएँ व निम्न मंत्र से स्नान कराएँ।)
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम् ।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ पंच नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः ।
सरवस्ती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्-सरित् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि, पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(पंचामृत स्नान व जल से स्नान कराएँ।)
गन्धोदक स्नान :
मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम् ।
चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(चंदनयुक्त जल से स्नान कराएँ।)
(नोट :- जो व्यक्ति श्री सूक्त, पुरुष सूक्त अथवा सहस्रनाम आदि से पुष्पार्चन अथवा जल अभिषेक
करना चाहते हैं, वे अर्चन अथवा अभिषेक करें फिर शुद्धोदक स्नान कराएँ अथवा सीधे शुद्धोदक स्नान कराएँ।)
शुद्धोदक स्नान :
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)
आचमन :
पश्चात ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ से आचमन कराएँ।
वस्त्र :
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम् ।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ॥
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
(वस्त्र अर्पित करें, आचमनीय जल दें।)
उपवस्त्र :
कंचुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम् ।
गृहाण त्वं मया दत्तं मंगले जगदीश्र्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
(उपवस्त्र चढ़ाएँ, आचमन के लिए जल दें।)
यज्ञोपवीत :
ॐ तस्मादअकूवा अजायंत ये के चोभयादतः ।
गावोह यज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥
ॐ यज्ञोपवीतं परमं वस्त्रं प्रजापतयेः त्सहजं पुरस्तात ॥
आयुष्यम अग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तुतेजः ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
आभूषण :
रत्नकंकणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च ।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः ॥
ॐ क्षुत्विपासामलां ज्येष्ठाम्-अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नानाविधानि कुंडलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि ।
(आभूषण समर्पित करें।)
गन्ध :
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।
विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्युपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धं समर्पयामि ।
(केसर मिश्रित चन्दन अर्पित करें।)
रक्त चन्दन :
रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम् ।
मया दत्तं महालक्ष्मी चन्दनं प्रतिगृह्यताम ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, रक्तचन्दनं समर्पयामि ।
(रक्त चंदन चढ़ाएँ।)
सिन्दूर :
सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये ।
भक्तया दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सिन्दूरं समर्पयामि ।
(सिन्दूर चढ़ाएँ।)
कुंकुम :
कुंकुमं कामदं दिव्यं कुंकुमं कामरूपिणम् ।
अखण्डकामसौभाग्यं कुंकुमं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, कुंकुमं समर्पयामि ।
(कुंकुम अर्पित करें।)
पुष्पसार (इत्र) :
तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।
मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पुष्पसारं च समर्पयामि ।
(इत्र चढ़ाएँ।)
अक्षत :
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः ।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अक्षतान् समर्पयामि ।
(कुंकुमाक्त अक्षत चढ़ाएँ।)
पुष्पमाला :
माल्यादीनि सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो ।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नास्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि ।
(लाल कमल के पुष्प तथा पुष्पमालाओं से अलंकृत करें।)
दूर्वा :
विष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम् ।
क्षीरसागरसम्भूते दूर्वां स्वीकुरू सर्वदा ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दूर्वांकुरान् समर्पयामि ।
(दूर्वांकुर अर्पित करें।)
महालक्ष्मी के विभिन्न अंगों का कुंकुम एवं अक्षत से पूजन करें :-
अंग पूजा :
पैर पूजन- ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि।
जानु पूजन- ॐ चंचलायै नमः, जानुनी पूजयामि
कमर पूजन- ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि
नाभि पूजन- ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि
जठर पूजन- ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि
वक्षस्थल पूजन- ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षः स्थलम् पूजयामि
हाथ पूजन- ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि
मुख पूजन- ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि
तीनों नेत्र पूजन- ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि
सिर पूजन- ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि
समस्त अंग पूजन- ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वांग पूजयामि
इसके पश्चात घड़ी की सुई की तरह पूर्व, आग्नेय कोण, दक्षिण, नैरुत, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान दिशा में निम्न आठ सिद्धियों का पूजन करें।
अष्टसिद्धिपूजन :- महा Lakshmi
पूर्व दिशा में :- ‘ॐ अणिम्ने नमः’
आग्नेय कोण में :- ‘ॐ महिम्ने नमः’
दक्षिण दिशा में :- ‘ॐ गरिम्णे नमः’
नैरुत कोण में :- ‘ॐ लघिम्ने नमः’
पश्चिम दिशा में :- ‘ॐ प्राप्त्यै नमः’
वायव्य कोण में :- ‘ॐ प्रकाम्यै नमः’
उत्तर दिशा में :- ‘ॐ ईशितायै नमः’
ईशान कोण में :- ‘ॐ वशितायै नमः’
अष्टलक्ष्मी पूजन : महा Lakshmi
इसके बाद पूर्व दिशा से शुरू कर घड़ी की सुई की दिशा के क्रम से आठों दिशाओं में अष्ट लक्ष्मियों का पूजन करें।
पूर्व दिशा में :- ‘ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः’
आग्नेय कोण में :- ‘ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः’
दक्षिण दिशा में :- ‘ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः’
नैरुत कोण में :- ‘ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः’
पश्चिम दिशा में :- ‘ॐ कामलक्ष्म्यै नमः’
वायव्य कोण में :- ‘ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः’
उत्तर दिशा में :- ‘ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः’
ईशान कोण में :- ‘ॐ योगलक्ष्म्यै नमः’
धूप :
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः ।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ कर्र्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि ।
(धूप आघ्रापित करें।)
दीप :
कार्पास वर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम् ।
तमो नाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दीपं दर्शयामि ।
(दीपक दिखाकर हाथ धो लें।)
नैवेद्य :
(मालपुए सहित पंचमिष्ठान्न व सूखे मेवे।)
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्य समन्वितम् ।
षड्रसैन्वितं दिव्यं लक्ष्मी देवि नमोऽस्तु ते ॥
ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् ॥
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ।
बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें :-
1. ॐ प्राणाय स्वाहा 2. ॐ अपानाय स्वाहा 3. ॐ समानाय स्वाहा 4. ॐ उदानाय स्वाहा 5. ॐ
व्यानाय स्वाहा।
मध्ये पानीयम्, उत्तरापोशनार्र्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि ।
( नैवेद्य निवेदित कर पुनः हस्तप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें।)
करोद्वर्तन :
‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ यह कहकर करोद्वर्तन के लिए हाथों में चन्दन उपलेपित करें।
आचमन :
शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरण सुवासितम् ।
आचम्यतां जलं ह्येतत् प्रसीद परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
(आचमन के लिए जल दें।)
ऋतुफल :
(सीताफल, गन्ना, सिंघाड़े व अन्य फल।)
फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
तस्मात् फलप्रदादेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अखण्डऋतुफलं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
(ऋतुफल अर्पित करें तथा आचमन के लिए जल दें।)
ताम्बूल :
पूगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् ।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि ।
(लवंग, इलायची एवं ताम्बूल अर्पित करें।)
दक्षिणा :
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि ।
(दक्षिणा चढ़ाएँ।)
आरती :
चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम् ।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्तया गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि ।
(जल छोड़ें व हाथ धोएँ।)
प्रदक्षिणा :
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणपदे पदे ॥
(प्रदक्षिणा करें।)
प्रार्थना :
हाथ जोड़कर बोलें :-
विशालाक्षी महामाया कौमारी शंखिनी शिवा ।
चक्रिणी जयदात्री चरणमत्ता रणाप्रिया ॥
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मी! नमोऽस्तु ते ॥
नमस्ते साधक प्रचुर आनंद सम्पत्ति सुखदायिनी ।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारम् समर्पयामि ।
(प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।)
समर्पण :
‘कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीतताम्, न मम’ ।
(हाथ में जल लेकर छोड़ दें।)
देहली, दवात, बही-खाता, तिजोरी व दीपावली (दीपमालिका) पूजन
देहली पूजन :
अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान व घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर ‘ॐ श्रीगणेशाय नमः’ लिखें साथ ही ‘स्वस्तिक चिन्ह’, ‘शुभ-लाभ’ आदि मांगलिक एवं कल्याणकारी शब्द सिन्दूर अथवा केसर से लिखें। इसके पश्चात निम्न मंत्र बोलकर ‘ॐ देहलीविनायकाय नमः’ गन्ध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें।
दवात (श्री महाकाली) पूजन :
काली स्याहीयुक्त दवात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षत पर रखें, सिन्दूर से स्वस्तिक बना दें तथा नाड़ा लपेट दें। निम्न मंत्र बोलकर ‘ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः’ गन्ध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप न नैवेद्य से दवात में भगवती महाकाली का पूजन करें। इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करें-
कालिके! त्वं जगन्मातः मसिरूपेण वर्तसे ।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ॥
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहराद क्षैः ।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु ॥
(पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें।)
लेखनी पूजन : – महा Lakshmi
लेखनी (कलम) पर नाड़ा बाँधकर सामने की ओर रखें। निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें :-
लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।
लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् ॥
‘ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः’
गंध, पुष्प, पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें :-
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः ।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥
बही-खाता ( सरस्वती) पूजन :- महा Lakshmi
बही-खातों पर स्वस्तिक बनाएँ व बसना पर स्वस्तिक चिह्न बनाकर उस पर रखें एवं एक थैली के ऊपर रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वस्तिक चिन्ह बनाएँ तथा थैली में पाँच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा व द्रव्य रखकर, उसमें सरस्वती का ध्यान करें।
या कुन्देन्दुतुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्यासना ॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवेः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
ध्यान बोलकर प्रणाम करें। निम्न मंत्र द्वारा सरस्वती का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य द्वारा पूजन करें :-
‘ॐ वीणापुस्तक धारिण्यै श्री सरस्वत्यै नमः’
तिजोरी (कुबेर) पूजन : – महा Lakshmi
तिजोरी पर स्वस्तिक बनाएँ एवं निधिपति कुबेर का निम्न वाक्य बोलकर आह्वान करें :-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु ।
कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्र्वर ॥
आह्वान के पश्चात निम्न मंत्र द्वारा ‘ॐ कुबेराय नमः’ कुबेर का गन्ध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से
पूजन कर प्रार्थना करें :- महा Lakshmi
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च ।
भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥
इसके पश्चात पूर्व में महालक्ष्मी के साथ पूजित थैली (हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादि से युक्त) तिजोरी में रखकर कुबेर एवं महालक्ष्मी को प्रणाम करें।
तुला-पूजन :
व्यापारिक प्रतिष्ठान में उपयोग आने वाले तराजू (तुला) पर स्वस्तिक बनाकर उस पर नाड़ा लपेटें व नाड़े से लपेटे तुलाधिष्ठातृदेवता का ध्यान निम्न प्रकार से करें :-
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता ।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना ॥
ध्यान के पश्चात निम्न मंत्र द्वारा ‘ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः’ तुला का गंध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रणाम करें।
दीपमालिका (दीपक) पूजन :
ऐक थाली में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक या कम (यथाशक्ति) दीपक प्रज्वलित कर उन्हें महा Lakshmi के सामने की ओर रखकर उस दीपमालिका की इस प्रकार प्रार्थना करें :-
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥
प्रार्थना के पश्चात निम्न मंत्र ‘ॐ दीपावल्यै नमः’ द्वारा दीप माला का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।
इसके पश्चात अपने अनुसार गन्ना, सीताफल सिंघाड़े, साल की धानी इत्यादि पदार्थ अर्पित करें। साल की धानी गणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी तथा अन्य देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अंत में इन सभी दीपकों द्वारा घर या व्यापारिक प्रतिष्ठान को सजाएँ।
समस्त पूजन हो जाने के पश्चात श्री सूक्त का पाठ करें :-
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।१।।
तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।२।।
अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम्। श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।३।।
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्।।४।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्। तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।।५।।
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।६।।
उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।।७।।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात्।।८।।
गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम्।।९।।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि। पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।१०।।
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम। श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।।११।।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे। नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।।१२।।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।१३।।
आर्द्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।१४।।
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।।१५।।
य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत्।।१६।।
: पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षी पद्मासम्भवे ।
त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥17॥
अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने ।
धनं मे जुषताम् देवी सर्वकामांश्च देहि मे ॥18॥
पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम् ॥19॥
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नुते ॥20॥
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु ॥21॥
न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः । भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥22॥
वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः ।
रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि ॥23॥
पद्मप्रिये पद्म पद्महस्ते पद्मालये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥24॥
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी । गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया ॥25॥
लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता हेमकुम्भैः ।
नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥26॥
लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीम् ।
दासीभूतसमस्त देव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥27॥
श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥28॥
सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती ।
श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा ॥29॥
वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम् ।
बालार्क कोटि प्रतिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीस्वरीं त्वाम् ॥30॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥31॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥32॥
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
विष्णोः प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥33॥
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥34॥
श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महियते ।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥35॥
ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥36॥
य एवं वेद ॐ महादेव्यै च विष्णुपत्नीं च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
हाथ में पुष्प अक्षत लेकर श्रीमहालक्ष्मीस्तोत्रम् का पाठ करें
: ॥श्रीमहालक्ष्मीस्तोत्रम् विष्णुपुराणान्तर्गतम्॥
श्रीगणेशाय नमः।
श्रीपराशर उवाच
सिंहासनगतः शक्रस्सम्प्राप्य त्रिदिवं पुनः।
देवराज्ये स्थितो देवीं तुष्टावाब्जकरां ततः॥ १॥
इन्द्र उवाच
नमस्ये सर्वलोकानां जननीमब्जसम्भवाम्।
श्रियमुन्निद्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम्॥ २॥
पद्मालयां पद्मकरां पद्मपत्रनिभेक्षणाम्
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियाम्यहम्॥ ३॥
त्वं सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं लोकपावनी।
सन्ध्या रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती॥ ४॥
यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या च शोभने।
आत्मविद्या च देवि त्वं विमुक्तिफलदायिनी॥ ५॥
आन्वीक्षिकी त्रयीवार्ता दण्डनीतिस्त्वमेव च।
सौम्यासौम्यैर्जगद्रूपैस्त्वयैतद्देवि पूरितम्॥ ६॥
का त्वन्या त्वमृते देवि सर्वयज्ञमयं वपुः।
अध्यास्ते देवदेवस्य योगचिन्त्यं गदाभृतः॥ ७॥
त्वया देवि परित्यक्तं सकलं भुवनत्रयम्।
विनष्टप्रायमभवत्त्वयेदानीं समेधितम्॥ ८॥
दाराः पुत्रास्तथाऽऽगारं सुहृद्धान्यधनादिकम्।
भवत्येतन्महाभागे नित्यं त्वद्वीक्षणान्नृणाम्॥ ९॥
शरीरारोग्यमैश्वर्यमरिपक्षक्षयः सुखम्।
देवि त्वद्दृष्टिदृष्टानां पुरुषाणां न दुर्लभम्॥ १०॥
त्वमम्बा सर्वभूतानां देवदेवो हरिः पिता।
त्वयैतद्विष्णुना चाम्ब जगद्व्याप्तं चराचरम्॥ ११॥
मनःकोशस्तथा गोष्ठं मा गृहं मा परिच्छदम्।
मा शरीरं कलत्रं च त्यजेथाः सर्वपावनि॥ १२॥
मा पुत्रान्मा सुहृद्वर्गान्मा पशून्मा विभूषणम्।
त्यजेथा मम देवस्य विष्णोर्वक्षःस्थलाश्रये॥ १३॥
सत्त्वेन सत्यशौचाभ्यां तथा शीलादिभिर्गुणैः।
त्यज्यन्ते ते नराः सद्यः सन्त्यक्ता ये त्वयाऽमले॥ १४॥
त्वयाऽवलोकिताः सद्यः शीलाद्यैरखिलैर्गुणैः।
कुलैश्वर्यैश्च पूज्यन्ते पुरुषा निर्गुणा अपि॥ १५॥
सश्लाघ्यः सगुणी धन्यः स कुलीनः स बुद्धिमान्।
स शूरः सचविक्रान्तो यस्त्वया देवि वीक्षितः॥ १६॥
सद्योवैगुण्यमायान्ति शीलाद्याः सकला गुणाः।
पराङ्गमुखी जगद्धात्री यस्य त्वं विष्णुवल्लभे॥ १७॥
न ते वर्णयितुं शक्तागुणाञ्जिह्वाऽपि वेधसः।
प्रसीद देवि पद्माक्षि माऽस्मांस्त्याक्षीः कदाचन॥ १८॥
श्रीपराशर उवाच
एवं श्रीः संस्तुता सम्यक् प्राह हृष्टा शतक्रतुम्।
शृण्वतां सर्वदेवानां सर्वभूतस्थिता द्विज॥ १९॥
श्रीरुवाच
परितुष्टास्मि देवेश स्तोत्रेणानेन ते हरेः।
वरं वृणीष्व यस्त्विष्टो वरदाऽहं तवागता॥ २०॥
इन्द्र उवाच
वरदा यदिमेदेवि वरार्हो यदिवाऽप्यहम्।
त्रैलोक्यं न त्वया त्याज्यमेष मेऽस्तु वरः परः॥ २१॥
स्तोत्रेण यस्तवैतेन त्वां स्तोष्यत्यब्धिसम्भवे।
स त्वया न परित्याज्यो द्वितीयोऽस्तुवरो मम॥ २२॥
श्रीरुवाच
त्रैलोक्यं त्रिदशश्रेष्ठ न सन्त्यक्ष्यामि वासव।
दत्तो वरो मयाऽयं ते स्तोत्राराधनतुष्ट्या॥ २३॥
यश्च सायं तथा प्रातः स्तोत्रेणानेन मानवः।
स्तोष्यते चेन्न तस्याहं भविष्यामि पराङ्गमुखी॥ २४॥
श्रीपाराशर उवाच
एवं वरं ददौ देवी देवराजाय वै पुरा।
मैत्रेय श्रीर्महाभागा स्तोत्राराधनतोषिता॥ २५॥
भृगोः ख्यात्यां समुत्पन्ना श्रीः पूर्वमुदधेः पुनः।
देवदानवयत्नेन प्रसूताऽमृतमन्थने॥ २६॥
एवं यदा जगत्स्वामी देवराजो जनार्दनः।
अवतारः करोत्येषा तदा श्रीस्तत्सहायिनी॥ २७॥
पुनश्चपद्मा सम्भूता यदाऽदित्योऽभवद्धरिः।
यदा च भार्गवो रामस्तदाभूद्धरणीत्वियम्॥ २८॥
राघवत्वेऽभवत्सीता रुक्मिणी कृष्णजन्मनि।
अन्येषु चावतारेषु विष्णोरेखाऽनपायिनी॥ २९॥
देवत्वे देवदेहेयं मानुषत्वे च मानुषी।
विष्णोर्देहानुरुपां वै करोत्येषाऽऽत्मनस्तनुम्॥ ३०॥
यश्चैतशृणुयाज्जन्म लक्ष्म्या यश्च पठेन्नरः।
श्रियो न विच्युतिस्तस्य गृहे यावत्कुलत्रयम्॥ ३१॥
पठ्यते येषु चैवर्षे गृहेषु श्रीस्तवं मुने।
अलक्ष्मीः कलहाधारा न तेष्वास्ते कदाचन॥ ३२॥
एतत्ते कथितं ब्रह्मन्यन्मां त्वं परिपृच्छसि।
क्षीराब्धौ श्रीर्यथा जाता पूर्वं भृगुसुता सती॥ ३३॥
इति सकलविभूत्यवाप्तिहेतुः स्तुतिरियमिन्द्रमुखोद्गता हि लक्ष्म्याः।
अनुदिनमिह पठ्यते नृभिर्यैर्वसति न तेषु कदाचिदप्यलक्ष्मीः॥ ३४॥
॥ इति श्रीविष्णुपुराणे महालक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
श्री महा Lakshmi कथा प्रारंभ:-
एक बार महाराजा युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण जी से पूछा है पुरुषोत्तम विचार पूर्वक आप एक ऐसा व्रत बताइए जिसके करने से अपने नष्ट हुए स्थान राज्य आदि जो छूट गए हो फिर से मिल जाएं और सब प्रकार के ऐश्वर्य पुत्र आयु आदि फलों की प्राप्ति हो। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे युधिष्ठिर सतयुग में घोर कटाई से जीतने योग्य स्वर्ग को जब प्रबल देते उन्हें घेर लिया अर्थात देवताओं को बहुत तराश दिया तब यही बात नारद जी ने इंद्र से भी कहीं।
नारद मुनि बोले हे इंद्र पूर्व काल में एक अत्यंत सुंदर नगर था उस नगर का राजा मंगल नाम से विख्यात था। उसके एक दुष्ट चिल देवी नाम की स्त्री थी और दूसरी महा यशस्विनी जिसका नाम जो देवी था ,और वही पटरानी थी। 1 दिन राजा मंगल और चोल देवी ने राजमहल के ऊपर से एक जगह देखी। राजा उस जमीन को देखकर का मुक्त होकर कुछ मुस्कुरा कर अपनी स्त्री चोर वती देवी से बोला है चंचला छी अपनी शोभा से नंदनवन को जलाने वाला तेरे लिए यहां बगीचा लगवा लूंगा, यह सुनकर जल्दी भी नहीं कहा बहुत अच्छा लगवाई है उसके ऐसा कहने पर राजा ने वहां पर एक सुंदर बगीचा लगवा दिया।
जब वह बगीचा अनेक तरह से वृक्षों की लताओं से युक्त होकर फलने फूलने लगा और अनेक प्रकार के पक्षियों से सेवित अर्था संपूर्ण सामग्री से संपन्न हुआ तब हाय पर एक सोमवार आया जो कि विशाल शरीर वाला ऊंचाई में मानव चंद्रमा और सूर्य को पकड़ने वाला वह सूअर अनेक प्रकार के वृक्ष लाता दी को संयुक्त उस बगीचे को नष्ट करने लगा। श्री कृष्ण कहते हैं यही युधिष्ठिर जिसने उसने कितने ही वृक्ष फाड़ डाले कितने ही वृक्ष दांतो के प्रहार और घर्षण से तोड़ डालें।
Lakshmi पूजा का इतिहास एवं पूजन विधि।
काल सदस्य उस सूअर से बगीचे के सब रक्षकों ने भयभीत होकर उसका सारा हाल राजा से जाकर कहा यह सुनकर राजा के क्रोध से नेत्र लाल लाल हो गए और उसने अपनी सारी फौज को हुक्म दिया कि सोमवार को शीघ्र ही मार डालो उस प्रकार उत्पन्न देकर आजा भी मत वाले हाथियों के सहित चला। सेना ने बगीचे को चारों तरफ से घेर लिया जब आसुमल समय पाकर राजा के सामने हुआ तब राजा ने उसे बाण से मारा स्वरूप छोड़कर आकाश में काम देव तुल्य सुंदर शरीर वाला होकर विमान में बैठकर मंगल नामक राजा से बोला हे महिपाल आप का कल्याण हो आपने हमें मुक्त कर दिया अर्थात सुमर योनि से छुड़ा दिया अब मैं जिस कारण से सूअर हुआ था वह वर्णन सुनिए मेरा नाम चित्ररथ है मैं एक समय देवताओं से युक्त महा ब्रम्हदेव के निकट गीत गा रहा था।
गीत गाते गाते मुझसे ताल बिगड़ गई तो इसी क्रम से सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने मुझे श्राप दिया कि तू पृथ्वी पर होकर रहेगा और जब संपूर्ण शत्रुओं को जीतने वाला मंगल नामक राजा तुझे मारेगा तभी तेरी मुक्ति होगी, अतः हे माही पते आपके प्रताप से इस समय वही सब घटित हुआ विराम इससे हे राजन् देवताओं को अत्यंत दुर्लभ वर ग्रहण करो महालक्ष्मी का दिव्य व्रत बहुत उत्तम है। और वह चतुर वर्ग धर्म अर्थ काम और मोक्ष को देने वाला है नाराजी कहते हैं इस प्रकार चित्ररथ गंधर्व राजा के प्रति कहकर प्रसन्न होता हुआ अंतर्ध्यान हो गया इसके बाद राजा मंगल ने आंख में मुछाला लिए हुए,
किसी ब्राह्मण ब्रह्मचारी को अपने पास खड़े हुए देखा राम राजा हंसते हुए मधुर वाणी से बोला
कि तुम देव दानव गंधर्व राक्षस या राजा इनमें से कौन हो ब्रह्मचारी सत्य का हो कहां से और किस लिए तुम यहां आए हो इस प्रकार आजा के वचन सुनकर ब्रह्मचारी ने आशीर्वाद देकर कहा कि मैं आपके ही देश में उत्पन्न हूं और मैं आपके साथ ही हूं इससे हम को यथोचित कुछ आज्ञा दीजिए इनके अंतर राजा ने कहा कि तेरा नाम है तो तुम जल्दी ही जला से देखो और हमारे लिए जलाओ ऐसा ही करूंगा कह कर घोड़े पर चढ़कर जहां तालाब था।
वहां गया वहां उसका घोड़ा कीचड़ में फंस गया तब उसने घोड़े की पीठ से उतर कर चारों दिशाओं को देखा उसी तालाब के तट पर उसे एक दिव्य वस्त्रों को धारण किए हुए स्त्रियों का विशाल समूह दिखाओ पर विराम भटूरे बटु ने स्त्रियों के पास जाकर सारा हाल कहा और हाथ जोड़कर मधुर वाणी से बोला है सार्थ श्रद्धा भक्ति युक्त होकर तुम यह क्या कर रही हो इसकी क्या विधि है और इसका क्या फल होता है सोहम से विधि पूर्वक कहो ऐसे वचन सुनकर स्त्रियों का समुदाय आयुक्त वाणी से बोला है विप्र संपूर्ण फलों को देने वाला यह व्रत उन्हीं महालक्ष्मी का है जो तीनों लोकों में माया प्रकृति शक्ति आदि नामों से पुकारी जाती है और स्त्रियों ने उस बटु को व्रत की सारी विधि भी समझाई। तब देवियों के समूह ने कहा कि व्रतों में यह उत्तम रथ हमने तुमसे कहा इसके करने से अनायास वांछित फल प्राप्त होता है.
इस व्रत को करके अपने राजा से भी इसे कराओ यह उत्तम व्रत श्रद्धा वान को बताना। नास्तिकों के आगे व्रत को कभी प्रकाशित मत करना इसके बाद ब्राह्मण है उस स्त्री समूह को नमस्कार कर के कीचड़ से घोड़े को निकालकर तत्पश्चात जल पीकर राजा के निमित्त कमल के पत्तों में जल लेकर घोड़े पर चढ़कर राजा के पास पहुंचा और पर वक्त समस्त वृत्तांत कहा नाना प्रकार की सामग्री से युक्त होकर राजा से भी उस व्रत को कराया उस व्रत के प्रभाव से राजा सब राजाओं में श्रेष्ठ हुआ एक बार जहां चोल देवी नाम की रानी थी वहां राजा मंगल गया और चोर देवी ने राजा की भुजा में डोरेको देखा दौरे को लेकर रानी को अत्यंत क्रोध आया और मन में यह विचार कर रोहित होकर राजा के प्रति शंका करने लगी कि राजा शिकार के बहाने से किसी और स्त्री के पास जाते हैं।
Lakshmi पूजा का इतिहास एवं पूजन विधि।
उसने अपने सौभाग्य के लिए राजा के बाहों में डोरा डाल दिया है और इसी तरह मेरे देखने के लिए इस बटुक को भेजा है। अतः कुपित हो उस दुष्ट आत्मा ने कोप से उस डोरे को तोड़ कर फेंक दिया। सामंत मंत्री व्रत नृत्य आदि को के सहित 1 की वार्ता करते हुए राजा ने चोर देवी नाम की रानी के द्वारा डोरा तोड़ना इस बात को राजा ने नहीं समझा। उसी समय दूसरी चील देवी नाम वाली रानी को की कोई दासी देखने को आई उसने टूटे हुए दौरे को लेकर उसके व्रत आदि का महत्व बटुक से समझकर उस दासी ने अपनी रानी चिल देवी से उस औरत को करने के लिए कहा तत्पश्चात जल देवी ने नूतन नामक बटुक को बुलाकर इस व्रत को किया अनंतर 1 वर्ष के बीतने पर लक्ष्मी पूजा के दिन चल देवी रानी के घर में बाजे गाने नाच आदि के शब्दों को राजा ने सुना उस शब्द को सुनकर राजा ने नूतन नामक बटुक से कहा
आह ! आज महा Lakshmi के पूजन का दिन है वह मेरा व्रत का डोरा कहां है इस प्रकार राजा के पूछने पर बैठो अपने दौरे के तोड़ने की बात कह सुनाई उसको सुनकर मंगल राजा जोर देवी पर नाराज होकर कहने लगा कि आज हम चल देवी रानी के घर में पूजा करेंगे। तत्पश्चात नूतन के हाथ को पकड़ कर मंगल राजा Lakshmi जी के पूजन के लिए चिल देवी के घर गए लक्ष्मी जी वृद्धा स्त्री का रूप धारण कर परीक्षा लेने के लिए कुलदेवी के गृह में आए उसको देखकर रानी ने कहा कि हे दृष्टि तू यहां से चली जा तेरे यहां आने से क्या है इस प्रकार उस दुष्ट रानी से अत्यंत अपमानित होकर Lakshmi जी क्रोध कर के चुल्ल देवी से गोली तूने जो मेरा अनादर किया है।
उससे तू शुक्र मुखी हो इस प्रकार रानी को श्राप दे दिया तभी से पृथ्वी पर यह मंगलपुर कोल्हापुर नाम से प्रसिद्ध हुआ तत्पश्चात रानी के स्तुति करने पर महा Lakshmi जी उसी रूप में श्रीदेवी के ग्रह में आएं देवी ने बहुत प्रकार से मानपूर्वक Lakshmi जी की पूजा की तब लक्ष्मी जी ग्रुप को छोड़कर अप्रत्यक्ष हुई और रानी ने श्री महालक्ष्मी जी की पूजा की तत्पश्चात लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर शिव देवी से बोली हे चल देवी मैं तुम्हारे पूजन से प्रसन्न हूं वर मांगो शुभ विचार वाली चील देवी महा Lakshmi सेवर मांगा की है देवी जो कोई इस व्रत को करें हे सुरेश्वरी उसके घर को जब तक सूर्य चंद्रमा रहे तब तक ना छोड़ो और आज से यह राज संबंधित कथा संसार में विख्यात हो और तुम्हारे प्रति हमारी भक्ति हो और जो सद्भाव से इस कथा को पड़े या सुने उसको वांछित फल दो महालक्ष्मी तथास्तु कहकर वही अंतर्ध्यान हो गई तत्पश्चात मंगल नाम के राजा ने वहां आकर लक्ष्मी जी का पूजन से चल देवी सहित किया
इससे दुष्प्रचार करने वाली चोल देवी को चिल देवी के गृह में आती हुई देखकर द्वारपालों ने रोका तो वह क्रोध से जहां अंगिरा ऋषि रहते थे वह सर 1 को चली गई उन्होंने उसे छूकर देवी देखकर ज्ञान दृष्टि से विचार कर उस चोर देवी से Lakshmi जी का पूजन एवं व्रत कराया व्रत के करने से चोल देवी महा तपस्विनी बने किसी समय में मंगल राजा ने मुनि से पूछा कि यह स्त्री कौन है तब उसका वृत्तांत मुनि ने राजा को कह सुनाया राजा यह सुनकर चोर देवी को अपने साथ पुनः राज्य में ले गया तब वहां आकर चोल देवी और चील देवी दोनों प्रेम से रहने लगी रानियों सहित राजा मंगल अनंत वर्षों तक राज्य करते रहे वह नूतन बटुक मंगल राजा का मंत्री बना महा Lakshmi के इस व्रत के प्रभाव से अभीष्ट की प्राप्ति होती है जिस जिस ने इस व्रत को किया है मन वांछित फल को पाया है।
इसके पश्चात दीपक और कपूर से श्री महा Lakshmi की महाआरती करें।
(आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सब लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।)
मंत्र-पुष्पांजलि : – महा Lakshmi
( अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें) :-
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं
महाराज्यमपित्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौमः
सार्वायुषान्तादापरार्धात् ।
पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति
तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे ।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ।
ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात् ।
सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन् देव एकः ॥
महालक्ष्म्यै च विद्महे, विष्णुपत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।
ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।
(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)
प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें :-
क्षमा प्रार्थना :श्री महा Lakshmi
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ॥
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वम् मम देवदेव ।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।
त्राहि माम् परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥
पूजन समर्पण :
हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :-
‘ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतुः ॥’
(जल छोड़ दें, प्रणाम करें)
श्री महा Lakshmi विसर्जन :
अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें :-
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥
ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!!
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