
हनुमान जी पुराणों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। हनुमान राम जी के परम् सेवक एवम् परम् भक्त थे। शिवजी के अवतार व् अंजनी पुत्र महावीर हनुमान जी अजर अमर 7 महात्माओं में से एक हैं। भारतवर्ष में सर्वाधिक मंदिरों में इन्ही की पूजा की जाती है।
महावीर हनुमान बजरंग बली जी के जन्म की कथा:-
ऐसा माना जाता है कि महावीर हनुमान जी का जन्म समुद्र मन्थन के समय शिव जी की कृपा से वनराज केसरी व् अंजनी जी के यहाँ हुआ। ब्रम्हांड पुराण में एक प्रसंग मिलता जिसमे अंजना के पूर्व जन्म की कथा का वर्णन है अंजना स्वर्ग में अप्सरा थीं उनको ऋषि की यज्ञ खण्डित करने पर श्राप मिला था कि तुम्हारा मुख वानर का हो जाये, पश्चाताप करने व् ब्रम्हा जी के कहने पर ऋषि जी ने उनके श्राप के संक्षिप्त कर दिए और अगले जन्म में स्त्री के रूप में जन्म हुआ बाल्यकाल से ही शिव जी की आराधना ने लीन रहने लगी।
वनराज केसरी से विवाह होने के बाद भी शिव जी को नही भूली। प्रसन्न होने के बाद शिव जी के प्रकट होने पर श्राप से उन्मुक्त होने हेतु रूद्र अवतार के जन्म देने हेतु माँ अंजनी ने प्रार्थना की भगवन आशीर्वाद प्रदान किया। तब उनके एक बानर मुख वाले मारुत नामक अत्यंत प्रतापी एवम् वज्र दृश्य बालक का जन्म हुआ। ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था।
प्रति वर्ष चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। कलयुग में ये सब के रक्षक होंगे छोटे से प्रयत्न में महावीर हनुमान प्रसन्न होने वाले हैं।
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हनुमान जी की सम्पूर्ण पूजन विधि:-
ध्यान करें-
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
ऊँ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।
आवाह्न-
उद्यत्कोट्यर्कसंकाशं जगत्प्रक्षोभकारकम्।
श्रीरामड्घ्रिध्याननिष्ठं सुग्रीवप्रमुखार्चितम्।।
विन्नासयन्तं नादेन राक्षसान् मारुतिं भजेत्।।
ऊँ हनुमते नम: आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।
आसन-
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
भूमि पर तीन बार जल छोड़ें।
ऊँ हनुमते नम:, पाद्यं समर्पयामि।।
अध्र्यं समर्पयामि। आचमनीयं समर्पयामि।।
दीप दिखाएं-
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।।
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोस्तु ते।।
ऊँ हनुमते नम:, दीपं दर्शयामि।।
तिलक : सभी लोग तिलक करें |
ॐ चंदनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पापनानम |
आपदां हरते नित्यं लक्ष्मी: तिष्ठति सर्वदा ||
रक्षासूत्र (मौली) बंधन : हाथ में मौली बाँध लें | ( सिर्फ पहले दिन )
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: |
तेन त्वां प्रतिबंध्नामि रक्षे मा चल मा चल ||
दीप पूजन : दीपक जला लें |
दीपो ज्योति: परं ब्रम्ह दीपो ज्योति: जनार्दन: |
दीपो हरतु में पापं दीपज्योति: नमोऽस्तु ते ||
गुरुपूजन : हाथ जोडकर गुरुदेव का ध्यान करें |
गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु:…. सद्गुरुं तं नमामि ||
बापूजी को तिलक करें | पुष्प व तुलसीदल चढायें | धुप व दीप दिखायें | नैवेध्य (प्रसाद) चढायें |
गणेशजी व माँ सरस्वतीजी का स्मरण :
वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ |
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ||
कलश पूजन : हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर कलश में ‘ॐ’ वं वरुणाय नम:’ कहते हुए वरुण देवता का तथा निम्न श्लोक पढ़ते हुए तीर्थों का आवाहन करेंगे –
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति |
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन सन्निधिं कुरु ||
(अक्षत –पुष्प कलश के सामने चढ़ा दें | )
कलश को तिलक करें | पुष्प, बिल्वपत्र व दूर्वा चढायें | धुप व दीप दिखायें | प्रसाद चढायें |
संकल्प : हाथ में जल, अक्षत व पुष्प लेकर संकल्प करें |
नोट : हाथ में लिए जल को देखते हुये ऐसी भावना करें कि जैसे जल व्यापक हैं, ऐसे ही हमारा संकल्प भी व्यापक हो | संकल्प करने के पहले, मध्य में एवं अंत में भगवान विष्णु (वसुदेव) को समर्पित करने की भावना करते हुये तीन बार भगवान के ‘विष्णु’ नाम का उच्चारण करें | (सभी को बुलवाना है | ) ‘ॐ विष्णु: विष्णु: विष्णु:’
आज पवित्र …. मास के कृष्ण / शुक्लपक्ष की …. तिथि को ……वार के दिन मैं पूज्य बापूजी के स्वास्थ्य व दीर्घायु / चिरंजीवी होने के लिए महामृत्युंजय मंत्र, तथा पूज्य बापूजी के ऊपर आयी आपदा के निवारणार्थ तथा अधिक-से-अधिक सुप्रचार के लिए ‘ॐ ह्रीं ॐ’ मंत्र, न्यायिक प्रक्रिया में विजय पाने के हेतु पवन तनय बल पवन समाना | बुधि बिबेक बिग्यान निधाना || मंत्र तथा दैवी शक्तियों की वृद्धि और आसुरी शक्तियों के शमन के लिए नवार्ण मंत्र – ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्ये…|’ के हवन का संकल्प करता हूँ | ॐ…. ॐ …. ॐ ….
हाथ में लिया हुआ द्रव्य पात्र में छोड़ दें |
महामृत्युंजय मंत्र विनियोग : हाथ में जल लेकर विनियोग करें | (सभी को बुलवाना है | )
ॐ अस्य श्री महामृत्युंजय मंत्रस्य वशिष्ठ ऋषि:, अनुष्टुप छंद:, श्री महामृत्युंजय रुद्रो देवता, हौं बीजं, जूं शक्ति:, स: कीलकं श्री आशारामजी सद्गुरुदेवस्य आयु: आरोग्य: यश: कीर्ति: तथा पुष्टि: वृद्धि अर्थे जपे तथा हवने विनियोग: |
हाथ में रखें हुए जल को पात्र में छोड़ दें |
नोट : ७ दिन के सविधि सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र अनुष्ठान में कुल १४०० माला होती है (प्रतिदिन २०० माला ) | ५० व्यक्ति के हिसाब से प्रति व्यक्ति प्रतिदिन ४ माला जप करें | (व्यक्तियों की संख्या के अनुसार माला की संख्या निर्धारित कर सकते है |)
मंत्र : ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात || ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ ||
अग्नि स्थापन : अग्नि प्रज्वलित करके अग्निदेव को प्रणाम करें | ॐ पावकान्गयें नम: | इसके बाद
ॐ गं गणपतये स्वाहा | (३ आहुतियाँ )
ॐ सूर्यादि नवग्रहेभ्यों देवेभ्यों स्वाहा | ( १ आहुति )
फिर इन मंत्रो से हवन करें –
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात || ( १ माला )
ॐ ह्रीं ॐ – ( ५ माला )
पवन तनय बल पवन समाना | बुधि बिबेक बिग्यान निधाना || ( २७ बार )
हाथ में जल लेकर नवार्ण मंत्र का विनियोग करें :
ॐ अस्य श्री नवार्णमंत्रस्य ब्रम्हाविष्णुरुद्रा ऋषय:, गायत्री ऊषणिक अनुष्टुभश्छंदांसि, श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महसरस्वत्यों देवता: ऐं बीजम, ह्रीं शक्ति:, क्लीं कीलकम, श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती प्रीत्यर्थे जपे तथा हवने विनियोंग: |
हाथ में रखा हुआ जल पात्र में छोड़ दें |
नवार्ण मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्ये | ( १ माला )
नवार्ण मंत्र का अर्थ : ‘ऐंकार’ के रूप में सृष्टिस्वरूपिणी, ‘ह्रीं’ के रूप में सृष्टि-पालन करनेवाली | ‘क्लीं’ के रूप में कामरूपिणी तथा (समस्त ब्रम्हाण्ड ) की बीजरूपिणी देवी | तुम्हें नमस्कार है | चामुंडा के रूप में चंद्विनाशिनी और ‘यैकार’ के रूप में तुम वर देनेवाली हो | ‘विच्चे’ रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो | (इस प्रकार ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्ये ) तुम इस मंत्र का स्वरुप हो |
अपने-अपने गुरु मंत्र की ७ आहुतियाँ डालें | (मंत्र मन में बोले व स्वाहा बोलते हुए एक साथ आहुति डालें | )
स्विष्टकृत होम : जाने-अनजाने में हवन करते समय जो भी गलती हो गयी हो, उसके प्रायश्चित के रूप में गुड़ व घृत की आहुति दें |
मंत्र – ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम |
कटोरी या दोना में बची हुई हवन सामग्री को निम्न मंत्र बोलते हुए तीन बार में होम दें |
(१) ॐ श्रीपतये स्वाहा |
(२) ॐ भुवनपतये स्वाहा |
(३) ॐ भूतानां पतये स्वाहा |
पूर्णाहुति होम : एक व्यक्ति हाथ में नारियल ले ले व अन्य सभी लोग नारियल का स्पर्श कर लें | जो घी की आहुति डाल रहे थे, वाह निम्न मंत्र उच्चारण करते हुए नारियल के ऊपर घी की धारा करें |
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते | पूर्णस्य पूर्णमादाय पुर्न्मेवावशिष्यते ||
ॐ शांति: शांति: शांति: |
आरती : ज्योत से ज्योत जगाओ…….
कर्पुर गौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं सदावसन्तं ह्र्दयारविंदे भवं भवानी सहितं नमामि |
दोहा : साधक माँगे माँगणा, प्रभु दीजो मोहे दोय |
बापू हमारे स्वस्थ रहें, आयु लम्बी होय ||
भस्मधारणम : यज्ञकुंड से स्त्रुवा (जिससे घी की आहुति दी जा रही थी ) में भस्म लेकर पहले बापूजी को तिलक करें, फिर सभी लोग स्वयं को तिलक करें |
प्रदिक्षणा : सभी लोग हवनकुंड की ३ परिक्रमा करें |
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च |
तानि सर्वाणि नश्चन्तु प्रदक्षिण: पदे पदे ||
साष्टांग प्रणाम : सभी साष्टांग प्रणाम करेंगे |
प्रार्थना : विश्व कल्याण के लिए हाथ जोडकर प्रार्थना करें |
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: |
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःखभाग भवेत् ||
दुर्जन : सज्जनों भूयात सज्जन: शंतिमाप्नुयात |
शांतो मुच्येत बंधभ्यो मुक्त: चान्यान विमोचयेत ||
क्षमा प्रार्थना : पूजन, जप, हवन आदि में जो गलतियाँ हो गयी हों , उनके लिए हाथ जोड़कर सभी लोग क्षमा प्रार्थना करें |
ॐ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम |
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ||
ॐ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर |
यत्पूजितं माया देवं परिपूर्ण तदस्तु में ||
विसर्जनम : थोड़े-से अक्षत लेकर देव स्थापन और हवन कुंड में निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए चढायें –
ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर |
यत्र ब्रम्हादयो देवा: तत्र गच्छ हुताशन ||
: भूत-प्रेत आदि के निवारण के लिए –Hanuman Mantra :-
ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय पंचवदनाय दक्षिण मुखे
कराल बदनाय नारसिंहाय सकल भूत प्रेत दमनाय
रामदूताय स्वाहा |
: भय निवारण के लिए – हनुमान मंत्र :
अंजनीगर्भसम्भूताय कपीन्द्र सचिवोत्तम रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमान रक्ष रक्ष सर्वदा ||
: वशीकरण मंत्र – हनुमान मंत्र :-
ॐ नमो हनुमते उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुं रुं रुं रुं रुं रूद्रमूर्तये प्रयोजन निर्वाहकाय स्वाहा ||
: व्यापर में प्रगति के लिए हनुमान मंत्र :-
जल खोलूं जल हल खोलूं खोलूं बंज व्यापार आवे धन अपार
फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा हनुमत वचन जुग जुग सांचा ||
हनुमान जी का बीज मंत्र :-
भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी आराधना कलियुग के समय में शीघ्र फल प्रदान करने वाली है | ऐसे में बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना आपके सभी दुखों को हरने में सक्षम है | हनुमान जी का बीज मंत्र है : ” हं ” |
हनुमान कवच मंत्र
“ॐ श्री हनुमते नम:”
सर्वकामना पूरक हनुमान मंत्र
ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्।
. हनुमान द्वाद्श्याक्षर मंत्र :-
” हं हनुमते रुद्रात्मकायं हुं फट् ”
जयघोष : रौद्ररूपाय नमो नमः।।
हनुमान तांडव स्त्रोत:-
यह हनुमान तांडव स्त्रोत सावधानी से पढ़ना चाहिए। इसके पढ़ने से हर तरह के संकट, रोग, शोक आदि सभी तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाते हैं।
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥ १॥
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥ ३॥
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥ ४॥
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥ ५॥
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥ ६॥
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥ ७॥
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥ ८॥
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा
न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥ ९॥
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे ।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥
ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्॥
एकादशमुख हनमत् कवच:-
।। लोपामुद्रोवाच ।। कुम्भोद्भवदया सिन्धो श्रुतं हनुमंत: परम् । यंत्रमंत्रादिकं सर्वं त्वन्मुखोदीरितं मया ।।१।।
दयां कुरु मयि प्राणनाथ वेदितुमुत्सहे । कवचं वायुपुत्रस्य एकादशखात्मन: ।।२।।
इत्येवं वचनं श्रुत्वा प्रियाया: प्रश्रयान्वितम् । वक्तुं प्रचक्रमे तत्र लोपामुद्रां प्रति प्रभु: ।।३।। ।।
अगस्त उवाच ।। नमस्कृत्वा रामदूतं हनुमन्तं महामतिम् । ब्रह्मप्रोक्तं तु कवचं श्रृणु सुन्दरि सादरात् ।।४।।
सनन्दनाय सुमहच्चतुराननभाषितम् । कवचं कामदं दिव्यं रक्षःकुलनिबर्हणम् ।।५।।
सर्वसंपत्प्रदं पुण्यं मर्त्यानां मधुरस्वरे । ॐ अस्य श्रीकवचस्यैकादशवक्त्रस्य धीमत: ।।६।।
हनुमत्कवचमंत्रस्य सनन्दन ऋषि: स्मृत: । प्रसन्नात्मा हनुमांश्च देवाताऽत्र प्रकीर्तितः ।।७।।
छन्दोऽनुष्टुप् समाख्यातं बीजं वायुसुतस्तथा । मुख्यात्र प्राण: शक्तिश्च विनियोग: प्रकर्तित: ।।८।।
सर्वकामार्थसिद्धयर्थ जप एवमुदीरयेत् । स्फ्रें बीजं शक्तिधृक् पातु शिरो मे पवनात्मज: ।
इति अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।। क्रौं बीजात्मा नयनयोः पातु मां वानरेश्वर: ।।९।।
इति तर्जनीभ्यां नमः ।। ॐ क्षं बीजरुपी कर्णौं मे सीताशोकविनाशन: ।
इति मध्यमाभ्यां नमः ।। ॐ ग्लौं बीजवाच्यो नासां मे लक्ष्मणप्राणदायक: । इति अनामिकाभ्यां नमः ।।१०।।
ॐ वं बीजार्थश्च कण्ठं मे अक्षयक्षयकारक: । इति कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।।
ॐ रां बीजवाच्यो हृदयं पातु मे कपिनायक: । इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।।११।।
ॐ वं बीजकीर्तित: पातु बाहु मे चाञ्जनीसुत: । ॐ ह्रां बीजं राक्षसेन्द्रस्य दर्पहा पातु चोदरम् ।।१२।।
सौं बीजमयो मध्यं मे पातु लंकाविदाहाक: । ह्रीं बीजधरो गुह्यं मे पातु देवेन्द्रवन्दित: ।।१३।।
रं बीजात्मा सदा पातु चोरू वार्धिलङ्घन: । सुग्रीव सचिव: पातु जानुनी मे मनोजव: ।।१४।।
आपादमस्तकं पातु रामदुतो महाबल: । पुर्वे वानरवक्त्रो मां चाग्नेय्यां क्षत्रियान्तकृत् ।।१५।।
दक्षिणे नारसिंहस्तु नैऋत्यां गणनायक: । वारुण्यां दिशि मामव्यात्खवक्त्रो हरिश्वर: ।।१६।।
वायव्यां भैरवमुख: कौबर्यां पातु मां सदा । क्रोडास्य: पातु मां नित्यमीशान्यां रुद्ररूपधृक् ।।१७।।
रामस्तु पातु मां नित्यं सौम्यरुपी महाभुज : । एकादशमुखस्यैतद्दिव्यं वै कीर्तितं मया ।।१८।।
रक्षोघ्नं कामदं सौम्यं सर्वसम्पद्विधायकम् । पुत्रदं धनदं चोग्रं शत्रुसम्पत्तिमर्दनम्।।१९।।
स्वर्गापवर्गदं दिव्यं चिन्तितार्थप्रदं शुभम् । एतत्कवचमज्ञात्वा मंत्रसिद्धिर्न जायते ।।२०।।
चत्वारिंशत्सहस्त्राणि पठेच्छुद्वात्मना नर: । एकवारं पठेन्नित्यं कवचं सिद्धिदं महत् ।।२१।।
द्विवारं वा त्रिवारं वा पठन्नायुष्यमाप्नुयात् । क्रमादेकादशादेवमावर्तनकृतात्सुधी: ।।२२।।
वर्षान्ते दर्शनं साक्षाल्लभते नात्र संशय: । यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति पुरुष: ।।२३।।
ब्रह्मोदीरितमेतद्धि तवाग्रे कथितं महत् । इत्येवमुक्त्वा कवचं महर्षिस्तूष्णीं बभूवेन्दुमुखीं निरीक्ष्य । संहृष्टचित्ताऽपि तदा तदीयपादौ ननामातिमुदा स्वभर्तु: ।।२४।।
इत्यगस्त्यसंहितायामेकादशमुखहनुमत्कवचं संपूर्णम् ।।
हनुमान जयंती पर करें हनुमान जी के इन 12 नामों का पाठ…
1. हनुमान, ॐ श्री हनुमते नमः।
अर्थ – भक्त हनुमान, जिनकी ठोड़ी में दरार हो।
2. अञ्जनी सुत, ॐ अञ्जनी सुताय नमः।
अर्थ – देवी अंजनी के पुत्र
3. वायु पुत्र, ॐ वायुपुत्राय नमः।
अर्थ – पवनदेव के पुत्र
4. महाबल, ॐ महाबलाय नमः।
अर्थ – जिसके पास बहुत ताकत हो।
5. रामेष्ट, ॐ रामेष्ठाय नमः।
अर्थ – श्रीराम के प्रिय
6. फाल्गुण सखा, ॐ फाल्गुण सखाय नमः।
अर्थ – अर्जुन के मित्र
7. पिङ्गाक्ष, ॐ पिंगाक्षाय नमः।
अर्थ – जिनकी आंखे लाल या सुनहरी है।
8. अमित विक्रम, ॐ अमितविक्रमाय नमः।
अर्थ – जिसकी वीरता अथाह या असीम हो।
9. उदधिक्रमण, ॐ उदधिक्रमणाय नमः।
अर्थ – एक छलांग में समुद्र पार करने वाले
10. सीता शोक विनाशन, ॐ सीताशोकविनाशनाय नमः।
अर्थ – माता सीता का दुख दूर करने वाले
11. लक्ष्मण प्राण दाता, ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः।
अर्थ – लक्ष्मण के प्राण वापस लाने वाले
12. दशग्रीव दर्पहा, ॐ दशग्रीवस्य दर्पाय नमः।
अर्थ – दस सिर वाले रावण का घमंड नाश करने वाले।
हनुमानजी के 12 नाम वाली स्तुति
हनुमानञ्जनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भेवत्।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।।
अर्थ:- हनुमान, अंजनीसुत, वायुपुत्र, महाबली, रामेष्ट, फाल्गुन सखा, पिंगाक्ष, अमित विक्रम, उदधिक्रमण, सीता शोक विनाशन, लक्ष्मण प्राणदाता, दशग्रीव दर्पहा। वानरराज हनुमान के इन 12 नामों का जाप सुबह, दोपहर, संध्याकाल और यात्रा के दौरान जो करता है। उसे किसी तरह का भय नहीं रहता, हर जगह उसकी विजय होती है।
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अथ श्री हनुमान चालीसा:-
श्रीगुरु चरन सरोज रज
निजमनु मुकुरु सुधारि
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा
महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुण्डल कुँचित केसा
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेउ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जग वंदन
बिद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचन्द्र के काज सँवारे
लाय सजीवन लखन जियाये
श्री रघुबीर हरषि उर लाये
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना
लंकेश्वर भए सब जग जाना
जुग सहस्र जोजन पर भानु
लील्यो ताहि मधुर फल जानू
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते
राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रच्छक काहू को डर ना
आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तें काँपै
भूत पिसाच निकट नहिं आवै
महाबीर जब नाम सुनावै
नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरन्तर हनुमत बीरा
संकट तें हनुमान छुड़ावै
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै
सब पर राम तपस्वी राजा
तिन के काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै
चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु सन्त के तुम रखवारे
असुर निकन्दन राम दुलारे
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा
तुह्मरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै
अन्त काल रघुबर पुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई
और देवता चित्त न धरई
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा
जय जय जय हनुमान गोसाईं
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बन्दि महा सुख होई
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
सियारामचन्द्र की जय।।
।।अथ श्री बजरंग बाण।।
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान
जय हनुमंत संत हितकारी सुन लीजै प्रभु अरज हमारी
जन के काज बिलंब न कीजै आतुर दौरि महा सुख दीजै
जैसे कूदि सिंधु महिपारा सुरसा बदन पैठि बिस्तारा
आगे जाय लंकिनी रोका मारेहु लात गई सुरलोका
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा सीता निरखि परमपद लीन्हा
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा अति आतुर जमकातर तोरा
अक्षय कुमार मारि संहारा लूम लपेटि लंक को जारा
लाह समान लंक जरि गई जय जय धुनि सुरपुर नभ भई
अब बिलंब केहि कारन स्वामी कृपा करहु उर अंतरयामी
जय जय लखन प्रान के दाता आतुर ह्वै दुख करहु निपाता
जै हनुमान जयति बल-सागर सुर-समूह-समरथ भट-नागर
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले बैरिहि मारु बज्र की कीले
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा
जय अंजनि कुमार बलवंता शंकरसुवन बीर हनुमंता
बदन कराल काल-कुल-घालक राम सहाय सदा प्रतिपालक
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर अगिन बेताल काल मारी मर
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की राखु नाथ मरजाद नाम की
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै राम दूत धरु मारु धाइ कै
जय जय जय हनुमंत अगाधा दुख पावत जन केहि अपराधा
पूजा जप तप नेम अचारा नहिं जानत कछु दास तुम्हारा
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं
जनकसुता हरि दास कहावौ ताकी सपथ बिलंब न लावौ
जै जै जै धुनि होत अकासा सुमिरत होय दुसह दुख नासा
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं यहि औसर अब केहि गोहरावौं
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई पायँ परौं, कर जोरि मनाई
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल
अपने जन को तुरत उबारौ सुमिरत होय आनंद हमारौ
यह बजरंग-बाण जेहि मारै ताहि कहौ फिरि कवन उबारै
पाठ करै बजरंग-बाण की हनुमत रक्षा करै प्रान की
यह बजरंग बाण जो जापैं तासों भूत-प्रेत सब कापैं
धूप देय जो जपै हमेसा ताके तन नहिं रहै कलेसा
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान।।।
संकटमोचन हनुमानाष्टक
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों I
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो I
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो I को – १
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो I
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो I
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो I को – २
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो I
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो I को – ३
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो I
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मरो I
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो I को – ४
बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो I
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो I
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो I को – ५
रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो I
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो I को – ६
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो I
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो I
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो I को – ७
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो I
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो I
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो I को – ८
दोहा
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर I
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर II
॥हरि: ॐ ॥
॥श्री पंचमुख-हनुमत्-कवच ॥
(मूल संस्कृत और हिन्दी अर्थ)
॥अथ श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचम् ॥
श्रीगणेशाय नम:| ॐ अस्य श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषि:| गायत्री छंद:| पञ्चमुख-विराट् हनुमान् देवता| ह्रीम् बीजम्| श्रीम् शक्ति:| क्रौम् कीलकम्| क्रूम् कवचम्| क्रैम् अस्त्राय फट् | इति दिग्बन्ध:|
इस स्तोत्र के ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद गायत्री है, देवता पंचमुख-विराट-हनुमानजी हैं, ह्रीम् बीज है, श्रीम् शक्ति है, क्रौम् कीलक है, क्रूम् कवच है और ‘क्रैम् अस्त्राय फट्’ यह दिग्बन्ध है|
॥श्री गरुड उवाच ॥
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वांगसुंदर|
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत: प्रियम् ॥१॥
गरुडजी ने कहा – हे सर्वांगसुंदर, देवाधिदेव के द्वारा, उन्हें प्रिय रहने वाला जो हनुमानजी का ध्यान किया गया, उसे स्पष्ट करता हूँ, सुनो|
पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम्|
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥२॥
पाँच मुख वाले, अत्यन्त विशाल रहने वाले, तीन गुना पाँच यानी पंद्रह नेत्र (त्रि-पञ्च-नयन) रहने वाले ऐसे ये पंचमुख-हनुमानजी हैं| दस हाथों से युक्त, सकल काम एवं अर्थ इन पुरुषार्थों की सिद्धि कराने वाले ऐसे वे हैं|
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्|
दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटिकुटिलेक्षणम्॥३॥
इनका पूर्व दिशा का या पूर्व दिशा की ओर देखने वाला जो मुख है, वह वानरमुख है, जिसकी प्रभा (तेज) कोटि (करोडों) सूर्यों के जितनी है|
उनका यह मुख कराल (कराल = भयकारक) दाढ़ें रहने वाला मुख है| भ्रुकुटि यानी भौंह और कुटिल यानी टेढी| भौंह टेढी करके देखने वाला ऐसा यह मुख है|
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्|
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥४॥
वक्त्र यानी चेहरा, मुख, वदन. इनका दक्षिण दिशा का या दक्षिण दिशा की तरफ देखने वाला जो मुख है, वह नारसिंहमुख है और वह बहुत ही अद्भुत है|
अत्यधिक उग्र ऐसा तेज रहने वाला वपु (वपु = शरीर) जिनका है, ऐसे हनुमानजी (अत्युग्रतेजोवपुषं) का यह मुख भय उत्पन्न करने वाला (भीषणं) और भय नष्ट करने वाला मुख है| (हनुमानजी का मुख एक ही समय पर बुरे लोगों के लिए भीषण और भक्तों के लिए भयनाशक है|)
पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् |
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्॥५॥
पश्चिम दिशा का अथवा पश्चिम दिशा में देखने वाला जो मुख है, वह गरुडमुख है| वह गरुडमुख वक्रतुण्ड है| साथ ही वह मुख महाबल है, बहुत ही सामर्थ्यवान है|
सारे नागों का प्रशमन करने वाला, विष और भूत आदि का (विषबाधा, भूतबाधा आदि बाधाओं का) कृन्तन करने वाला (उन्हें पूरी तरह नष्ट कर वशने वाला) ऐसा यह (पंचमुख-हनुमानजी का) गरुडानन है|
उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम्|
पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥६ ॥
उत्तर दिशा का या उत्तर दिशा में देखने वाला मुख यह वराहमुख है| वह कृष्ण वर्ण का (काले रंग का) है, तेजस्वी है, जिसकी उपमा आकाश के साथ की जा सकती है ऐसा है|
पातालनिवासियों का प्रमुख रहने वाला वेताल और भूलोक में कष्ट पहुँचाने वालीं बीमारियों का प्रमुख रहने वाला ज्वर (बुखार) इनका कृन्तन करने वाला, इन्हें समूल नष्ट करने वाला ऐसा यह उत्तर दिशा का वराहमुख है|
ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्|
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥
जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम्|
ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥८॥
ऊर्ध्व दिशा का या ऊर्ध्व दिशा में देखने वाला जो मुख है, वह अश्वमुख है| हय यानी घोडा = अश्व| यह दानवों का नाश करने वाला ऐसा श्रेष्ठ मुख है|
हे विप्रेन्द्र (श्रेष्ठ गायत्री उपासक), तारकाख्य नाम के प्रचंड असुर को नष्ट कर देने वाला यह अश्वमुख है| सारे शत्रुओं का हरण करने वाले श्रेष्ठ पंचमुख-हनुमानजी की तुम शरण में रहो|
रुद्र और दयानिधि इन दोनों रूपों में रहने वाले हनुमानजी का ध्यान करें और (अब गरुडजी पंचमुख-हनुमानजी के दस आयुधों के बारे में बता रहे हैं|)
खड़्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् |
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम्|
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्॥१०॥
पंचमुख-हनुमानजी के हाथों में तलवार, त्रिशूल, खट्वाङ्ग नाम का आयुध, पाश, अंकुश, पर्वत है| साथ ही मुष्टि नाम का आयुध, कौमोदकी गदा, वृक्ष और कमंडलु इन्हें भी पंचमुख-हनुमानजी ने धारण किया है|
पंचमुख-हनुमानजी ने भिंदिपाल भी धारण किया है| (भिंदिपाल यह लोहे से बना विलक्षण अस्त्र है| इसे फेंककर मारा जाता है, साथ ही इसमें से बाण भी चला सकते हैं| पंचमुख-हनुमानजी का दसवाँ आयुध है, ‘ज्ञानमुद्रा’| इस तरह दस आयुध और इन आयुधों के जाल उन्होंने धारण किये हैं| ऐसे इन मुनिपुंगव (मुनिश्रेष्ठ) पंचमुख-हनुमानजी की मैं (गरुड) स्वयं भक्ति करता हूँ|
प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम्|
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्॥११॥
वे प्रेतासन पर बैठे हैं (प्रेतासनोपविष्ट) (उपविष्ट यानी बैठे हुए), वे सारे आभरणों से भूषित हैं (आभरण यानी अलंकार, गहने), सारे अलंकारों से सुशोभित ऐसे (सारे अलंकारों से = सकल ऐश्वर्यों से विभूषित) हैं|
दिव्य मालाओं एवं दिव्य वस्त्र (अंबर) को उन्होंने धारण किया है| साथ ही दिव्यगंध का लेप उन्होंने बदन पर लगाया है|
सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतो मुखम् ॥
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं
शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम्|
पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं
पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि॥१२॥
सकल आश्चर्यों से भरे हुए, आश्चर्यमय ऐसे ये हमारे प्रभु हैं| विश्व में सर्वत्र जिन्होंने मुख किया है, ऐसे ये पंचमुख-हनुमानजी हैं|ऐसे ये पॉंच मुख रहने वाले (पञ्चास्य), अच्युत और अनेक अद्भुत वर्णयुक्त (रंगयुक्त) मुख रहने वाले हैं|
शश यानी खरगोश| शश जिसकी गोद में है ऐसा चन्द्र यानी शशांक| ऐसे शशांक को यानी चन्द्र को जिन्होंने माथे (शिखर) पर धारण किया है, ऐसे ये (शशांकशिखर) हनुमानजी हैं| कपियों में सर्वश्रेष्ठ रहने वाले ऐसे ये हनुमानजी हैं| पीतांबर, मुकुट आदि से जिनका अंग सुशोभित है, ऐसे ये हैं|
पिङ्गाक्षं, आद्यम् और अनिशं ये तीन शब्द यहाँ पर हैं| गुलाबी आभायुक्त पीत वर्ण के अक्ष (इंद्रिय/आँखें) रहने वाले ऐसे ये हैं| ये आद्य यानी पहले हैं| ये अनिश हैं यानी निरंतर हैं अर्थात् शाश्वत हैं| ऐसे इन पंचमुख-हनुमानजी का हम मनःपूर्वक स्मरण करते हैं|
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम्|
शत्रुं संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर॥
वानरश्रेष्ठ, प्रचंड उत्साही हनुमानजी सारे शत्रुओं का नि:पात करते हैं| हे श्रीमन् पंचमुख-हनुमानजी, मेरे शत्रुओं का संहार कीजिए| मेरी रक्षा कीजिए| संकट में से मेरा उध्दार कीजिए|
ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले|
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता॥
ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा|
महाप्राण हनुमानजी के बाँये पैर के तलवे के नीचे ‘ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा’ यह जो लिखेगा, उसके केवल शत्रु का ही नहीं बल्कि शत्रुकुल का नाश हो जायेगा| वाम यह शब्द यहाँ पर वाममार्ग का यानी कुमार्ग का प्रतिनिधित्व करता है| वाममार्ग पर जाने की प्रवृत्ति, खिंचाव यानी वामलता| (जैसे कोमल-कोमलता, वैसे वामल-वामलता|) इस वामलता को यानी दुरितता को, तिमिरप्रवृत्ति को हनुमानजी समूल नष्ट कर देते हैं|
अब हर एक वदन को ‘स्वाहा’ कहकर नमस्कार किया है|
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा|
सकल शत्रुओं का संहार करने वाले पूर्वमुख को, कपिमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार|
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा|
दुष्प्रवृत्तियों के प्रति भयानक मुख रहने वाले (करालवदनाय), सारे भूतों का उच्छेद करने वाले, दक्षिणमुख को, नरसिंहमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार|
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा|
सारे विषों का हरण करने वाले पश्चिममुख को, गरुडमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार|
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा|
सकल संपदाएँ प्रदान करने वाले उत्तरमुख को, आदिवराहमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार|
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा|
सकल जनों को वश में करने वाले, ऊर्ध्वमुख को, अश्वमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार|
ॐ श्रीपञ्चमुखहनुमन्ताय आञ्जनेयाय नमो नम:॥
आञ्जनेय श्री पञ्चमुख-हनुमानजी को पुन: पुन: नमस्कार।।
श्रीगणेशाय नमः
श्रीजानकीवल्लभो विजयते
श्रीमद्-गोस्वामी-तुलसीदास-कृत
छप्पय
सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ।।
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ।।
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट ।
गुन-गनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-विकट ।।१।।
स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन ।
उर बिसाल भुज-दंड चंड नख-बज्र बज्र-तन ।।
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन ।
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ।।
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट ।
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ।।२।।
झूलना
पंचमुख-छमुख-भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो ।
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ।।
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो ।
दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ।।३।।
घनाक्षरी
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसु-केलि कियो फेरफार सो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रम को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ।।
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।
बल कैंधौं बीर-रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ।।४।।
भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो ।
कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ।।
बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो ।
नाई-नाई माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ।।५
गो-पद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो ।
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ।।
संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो ।
साहसी समत्थ तुलसी को नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ।।६
कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो ।
जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो ।।
कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो ।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ।।७
दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो ।
सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन, लखन प्रिय प्रान सो ।।
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो ।
ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ।।८
दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को ।
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को ।।
लोक-परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को ।
राम को दुलारो दास बामदेव को निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोर को ।।९।।
महाबल-सीम महाभीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को ।
कुलिस-कठोर तनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीर को ।।
दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को ।
सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को ।।१०।।
रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि, हर मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो ।
धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु, पोषिबे को हिम-भानु भो ।।
खल-दुःख दोषिबे को, जन-परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक सुदान भो ।
आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो ।।११।।
सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को ।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को ।।
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को ।
सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को ।।१२।।
सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी ।
लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी ।।
केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की ।
बालक-ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की ।।१३।।
करुनानिधान, बलबुद्धि के निधान मोद-महिमा निधान, गुन-ज्ञान के निधान हौ ।
बामदेव-रुप भूप राम के सनेही, नाम लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ।।
आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक-बेद-बिधि के बिदूष हनुमान हौ ।
मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ।।१४।।
मन को अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं ।
देव-बंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं ।
बीर बरजोर, घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं ।
बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं ।।१५।।
सवैया
जान सिरोमनि हौ हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो ।
ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ।।
साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहाँ तुलसी को न चारो ।
दोष सुनाये तें आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तौ हिय हारो ।।१६।।
तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे घर घाले ।
तेरे निवाजे गरीब निवाज बिराजत बैरिन के उर साले ।।
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले ।
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ।।१७।।
सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से ।
तैं रनि-केहरि केहरि के बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से ।।
तोसों समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से ।
बानर बाज ! बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से ।।१८।।
अच्छ-विमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो ।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुंजर केहरि-बारो ।।
राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीर-दुलारो ।
पाप-तें साप-तें ताप तिहूँ-तें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो ।।१९।।
घनाक्षरी
जानत जहान हनुमान को निवाज्यौ जन, मन अनुमानि बलि, बोल न बिसारिये ।
सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये ।।
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये ।
साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ।।२०।।
बालक बिलोकि, बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये ।
रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिये ।।
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को, निहारि सो निवारिये ।
केसरी किसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये ।।२१।।
उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो सँभारिये ।
राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ।।
साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये ।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरि कै बदन बिदारिये ।।२२।।
राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये ।
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंत को भरोसो तेरो भारिये ।।
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै बिचारिये ।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह-पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात-घात ही मरोरि मारिये ।।२३।।
लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये ।
कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ।।
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये ।
बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये ।।२४।।
करम-कराल-कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बकभगिनी काहू तें कहा डरैगी ।
बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहूबल बालक छबीले छोटे छरैगी ।।
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनी के पाले परैगी ।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसी की, बाँहपीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ।।२५।।
भालकी कि कालकी कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की ।
करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की ।।
पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की ।
आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की ।।२६।।
सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है ।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ।।
तोरि जमकातरि मंदोदरी कढ़ोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महँतारी है ।
भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है ।।२७।।
तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र-रबि-राहु की ।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहु की ।।
साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की ।
आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की ।।२८।।
टूकनि को घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है ।
कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है ।।
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है ।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि को सो है ।।२९।।
आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है ।
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ।।
करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है ।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है ।।३०।।
दूत राम राय को, सपूत पूत बाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को ।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को ।।
एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को ।
थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ।।३१।।
देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं ।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, राम दूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं ।।
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं ।
क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ।।३२।।
तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घर के ।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ।।
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हर के ।
तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के ।।३३।।
पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये ।
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनी न अवडेरिये ।।
अँबु तू हौं अँबुचर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये ।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये ।।३४।।
घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है ।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम-मूल मलिनाई है ।।
करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं ते उड़ाई है ।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है ।।३५।।
सवैया
राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो ।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ।।
बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो ।
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो ।।३६।।
घनाक्षरी
काल की करालता करम कठिनाई कीधौं, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे ।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ।।
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे ।
भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे ।।३७।।
पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुँह पीर, जरजर सकल पीर मई है ।
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है ।।
हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारेही तें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है ।
कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है ।।३८।।
बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं ।
राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं ।।
सुमिरे सहाय राम लखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं ।
तुलसी सँभारि ताड़का सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं ।।३९।।
बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं ।
परयो लोक-रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं ।।
खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं ।
तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ।।४०।।
असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को ।
तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को ।।
नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को ।
ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को ।।४१।।
जीओं जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को ।
तुलसी के दुहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँउ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को ।।
मोको झूटो साँचो लोग राम को कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को ।
भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ।।४२।।
सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै ।
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै ।।
ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै ।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै ।।४३।।
कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये ।
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये ।।
माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये ।
तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिये ।।४४।।
श्री हनुमान सहस्त्रनाम का पाठ करने से जातक की हर इच्छा पूर्ण होती हैं ! और जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं ! श्री हनुमान सहस्त्रनामावली के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !!
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श्री हनुमान सहस्त्रनाम || Shri Hanuman Sahasranamam
1) ॐ हनुमते नमः।
2) ॐ श्रीप्रदाय नमः।
3) ॐ वायुपुत्राय नमः।
4) ॐ रुद्राय नमः।
5) ॐ अनघाय नमः।
6) ॐ अजराय नमः।
7) ॐ अमृत्यवे नमः।
8) ॐ वीरवीराय नमः।
9) ॐ ग्रामवासाय नमः।
10) ॐ जनाश्रयाय नमः।
11) ॐ धनदाय नमः।
12) ॐ निर्गुणाय नमः।
13) ॐ अकायाय नमः।
14) ॐ वीराय नमः।
15) ॐ निधिपतये नमः।
16) ॐ मुनये नमः।
17) ॐ पिङ्गालक्षाय नमः।
18) ॐ वरदाय नमः।
19) ॐ वाग्मिने नमः।
20) ॐ सीताशोकविनाशनाय नमः।
21) ॐ शिवाय नमः।
22) ॐ सर्वस्मै नमः।
23) ॐ परस्मै नमः।
24) ॐ अव्यक्ताय नमः।
25) ॐ व्यक्ताव्यक्ताय नमः।
26) ॐ रसाधराय नमः।
27) ॐ पिङ्गकेशाय नमः।
28) ॐ पिङ्गरोम्णे नमः।
29) ॐ श्रुतिगम्याय नमः।
30) ॐ सनातनाय नमः।
31) ॐ अनादये नमः।
32) ॐ भगवते नमः।
33) ॐ देवाय नमः।
34) ॐ विश्वहेतवे नमः।
35) ॐ निरामयाय नमः।
36) ॐ आरोग्यकर्त्रे नमः।
37) ॐ विश्वेशाय नमः।
38) ॐ विश्वनाथाय नमः।
39) ॐ हरीश्वराय नमः।
40) ॐ भर्गाय नमः।
41) ॐ रामाय नमः।
42) ॐ रामभक्ताय नमः।
43) ॐ कल्याणप्रकृतये नमः।
44) ॐ स्थिराय नमः।
45) ॐ विश्वम्भराय नमः।
46) ॐ विश्वमूर्तये नमः।
47) ॐ विश्वाकाराय नमः।
48) ॐ विश्वपाय नमः।
49) ॐ विश्वात्मने नमः।
50) ॐ विश्वसेव्याय नमः।
51) ॐ विश्वस्मै नमः।
52) ॐ विश्वहराय नमः।
53) ॐ रवये नमः।
54) ॐ विश्वचेष्टाय नमः।
55) ॐ विश्वगम्याय नमः।
56) ॐ विश्वध्येयाय नमः।
57) ॐ कलाधराय नमः।
58) ॐ प्लवङ्गमाय नमः।
59) ॐ कपिश्रेष्ठाय नमः।
60) ॐ ज्येष्ठाय नमः।
61) ॐ वैद्याय नमः।
62) ॐ वनेचराय नमः।
63) ॐ बालाय नमः।
64) ॐ वृद्धाय नमः।
65) ॐ यूने नमः।
66) ॐ तत्त्वाय नमः।
67) ॐ तत्त्वगम्याय नमः।
68) ॐ सख्ये नमः।
69) ॐ अजाय नमः।
70) ॐ अञ्जनासूनवे नमः।
71) ॐ अव्यग्राय नमः।
72) ॐ ग्रामख्याताय नमः।
73) ॐ धराधराय नमः।
74) ॐ भूर्लोकाय नमः।
75) ॐ भुवर्लोकाय नमः।
76) ॐ स्वर्लोकाय नमः।
77) ॐ महर्लोकाय नमः।
78) ॐ जनलोकाय नमः।
79) ॐ तपोलोकाय नमः।
80) ॐ अव्ययाय नमः।
81) ॐ सत्याय नमः।
82) ॐ ओंकारगम्याय नमः।
83) ॐ प्रणवाय नमः।
84) ॐ व्यापकाय नमः।
85) ॐ अमलाय नमः।
86) ॐ शिवधर्मप्रतिष्ठात्रे नमः।
87) ॐ रामेष्टाय नमः।
88) ॐ फाल्गुनप्रियाय नमः।
89) ॐ गोष्पदीकृतवारीशाय नमः।
90) ॐ पूर्णकामाय नमः।
91) ॐ धरापतये नमः।
92) ॐ रक्षोघ्नाय नमः।
93) ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः।
94) ॐ शरणागतवत्सलाय नमः।
95) ॐ जानकीप्राणदात्रे नमः।
96) ॐ रक्षःप्राणापहारकाय नमः।
97) ॐ पूर्णाय नमः।
98) ॐ सत्यायः नमः।
99) ॐ पीतवाससे नमः।
100) ॐ दिवाकरसमप्रभाय नमः।
101) ॐ देवोद्यानविहारिणे नमः।
102) ॐ देवताभयभञ्जनाय नमः।
103) ॐ भक्तोदयाय नमः।
104) ॐ भक्तलब्धाय नमः।
105) ॐ भक्तपालनतत्पराय नमः।
106) ॐ द्रोणहर्त्रे नमः।
107) ॐ शक्तिनेत्रे नमः।
108) ॐ शक्तिराक्षसमारकाय नमः।
109) ॐ अक्षघ्नाय नमः।
110) ॐ रामदूताय नमः।
111) ॐ शाकिनीजीवहारकाय नमः।
112) ॐ बुबुकारहतारातये नमः।
113) ॐ गर्वपर्वतप्रमर्दनाय नमः।
114) ॐ हेतवे नमः।
115) ॐ अहेतवे नमः।
116) ॐ प्रांशवे नमः।
117) ॐ विश्वभर्त्रे नमः।
118) ॐ जगद्गुरवे नमः।
119) ॐ जगन्नेत्रे नमः।
120) ॐ जगन्नाथाय नमः।
121) ॐ जगदीशाय नमः।
122) ॐ जनेश्वराय नमः।
123) ॐ जगद्धिताय नमः।
124) ॐ हरये नमः।
125) ॐ श्रीशाय नमः।
126) ॐ गरुडस्मयभञ्जनाय नमः।
127) ॐ पार्थध्वजाय नमः।
128) ॐ वायुपुत्राय नमः।
129) ॐ अमितपुच्छाय नमः।
130) ॐ अमितविक्रमाय नमः।
131) ॐ ब्रह्मपुच्छाय नमः।
132) ॐ परब्रह्मपुच्छाय नमः।
133) ॐ रामेष्टकारकाय नमः।
134) ॐ सुग्रीवादियुताय नमः।
135) ॐ ज्ञानिने नमः।
136) ॐ वानराय नमः।
137) ॐ वानरेश्वराय नमः।
138) ॐ कल्पस्थायिने नमः।
139) ॐ चिरञ्जीविने नमः।
140) ॐ तपनाय नमः।
141) ॐ सदाशिवाय नमः।
142) ॐ सन्नतये नमः।
143) ॐ सद्गतये नमः।
144) ॐ भुक्तिमुक्तिदाय नमः।
145) ॐ कीर्तिदायकाय नमः।
146) ॐ कीर्तये नमः।
147) ॐ कीर्तिप्रदाय नमः।
148) ॐ समुद्राय नमः।
149) ॐ श्रीप्रदाय नमः।
150) ॐ शिवाय नमः।
151) ॐ भक्तोदयाय नमः।
152) ॐ भक्तगम्याय नमः।
153) ॐ भक्तभाग्यप्रदायकाय नमः।
154) ॐ उदधिक्रमणाय नमः।
155) ॐ देवाय नमः।
156) ॐ संसारभयनाशनाय नमः।
157) ॐ वार्धिबन्धनकृते नमः।
158) ॐ विश्वजेत्रे नमः।
159) ॐ विश्वप्रतिष्ठिताय नमः।
160) ॐ लङ्कारये नमः।
161) ॐ कालपुरुषाय नमः।
162) ॐ लङ्केशगृहभञ्जनाय नमः।
163) ॐ भूतावासाय नमः।
164) ॐ वासुदेवाय नमः।
165) ॐ वसवे नमः।
166) ॐ त्रिभुवनेश्वराय नमः।
167) ॐ श्रीरामरूपाय नमः।
168) ॐ कृष्णाय नमः।
169) ॐ लङ्काप्रासादभञ्जकाय नमः।
170) ॐ कृष्णाय नमः।
171) ॐ कृष्णस्तुताय नमः।
172) ॐ शान्ताय नमः।
173) ॐ शान्तिदाय नमः।
174) ॐ विश्वपावनाय नमः।
175) ॐ विश्वभोक्त्रे नमः।
176) ॐ मारघ्नाय नमः।
177) ॐ ब्रह्मचारिणे नमः।
178) ॐ जितेन्द्रियाय नमः।
179) ॐ ऊर्ध्वगाय नमः।
180) ॐ लाङ्गुलिने नमः।
181) ॐ मालिने नमः।
182) ॐ लाङ्गूलाहतराक्षसाय नमः।
183) ॐ समीरतनुजाय नमः।
184) ॐ वीराय नमः।
185) ॐ वीरताराय नमः।
186) ॐ जयप्रदाय नमः।
187) ॐ जगन्मङ्गलदाय नमः।
188) ॐ पुण्याय नमः।
189) ॐ पुण्यश्रवणकीर्तनाय नमः।
190) ॐ पुण्यकीर्तये नमः।
191) ॐ पुण्यगतये नमः।
192) ॐ जगत्पावनापावनाय नमः।
193) ॐ देवेशाय नमः।
194) ॐ जितमाराय नमः।
195) ॐ रामभक्तिविधायकाय नमः।
196) ॐ ध्यात्रे नमः।
197) ॐ ध्येयाय नमः।
198) ॐ लयाय नमः।
199) ॐ साक्षिणे नमः।
200) ॐ चेतसे नमः।
201) ॐ चैतन्यविग्रहाय नमः।
202) ॐ ज्ञानदाय नमः।
203) ॐ प्राणदाय नमः।
204) ॐ प्राणाय नमः।
205) ॐ जगत्प्राणाय नमः।
206) ॐ समीरणाय नमः।
207) ॐ विभीषणप्रियाय नमः।
208) ॐ शूराय नमः।
209) ॐ पिप्पलाश्रयसिद्धिदाय नमः।
210) ॐ सिद्धाय नमः।
211) ॐ सिद्धाश्रयाय नमः।
212) ॐ कालाय नमः।
213) ॐ महोक्षाय नमः।
214) ॐ कालाजान्तकाय नमः।
215) ॐ लङ्केशनिधनाय नमः।
216) ॐ स्थायिने नमः।
217) ॐ लङ्कादाहकाय नमः।
218) ॐ ईश्वराय नमः।
219) ॐ चन्द्रसूर्याग्निनेत्राय नमः।
220) ॐ कालाग्नये नमः।
221) ॐ प्रलयान्तकाय नमः।
222) ॐ कपिलाय नमः।
223) ॐ कपिशाय नमः।
224) ॐ पुण्यराशये नमः।
225) ॐ द्वादशराशिगाय नमः।
226) ॐ सर्वाश्रयाय नमः।
227) ॐ अप्रमेयात्मने नमः।
228) ॐ रेवत्यादिनिवारकाय नमः।
229) ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः।
230) ॐ सीताजीवनहेतुकाय नमः।
231) ॐ रामध्येयाय नमः।
232) ॐ हृषिकेशाय नमः।
233) ॐ विष्णुभक्ताय नमः।
234) ॐ जटिने नमः।
235) ॐ बलिने नमः।
236) ॐ देवारिदर्पघ्ने नमः।
237) ॐ होत्रे नमः।
238) ॐ धात्रे नमः।
239) ॐ कर्त्रे नमः।
240) ॐ जगत्प्रभवे नमः।
241) ॐ नगरग्रामपालाय नमः।
242) ॐ शुद्धाय नमः।
243) ॐ बुद्धाय नमः।
244) ॐ निरत्रपाय नमः।
245) ॐ निरञ्जनाय नमः।
246) ॐ निर्विकल्पाय नमः।
247) ॐ गुणातीताय नमः।
248) ॐ भयङ्कराय नमः।
249) ॐ हनुमते नमः।
250) ॐ दुराराध्याय नमः।
251) ॐ तपःसाध्याय नमः।
252) ॐ महेश्वराय नमः।
253) ॐ जानकीधनशोकोत्थतापहर्त्रे नमः।
254) ॐ परात्परस्मै नमः।
255) ॐ वाङ्मयाय नमः।
256) ॐ सदसद्रूपाय नमः।
257) ॐ कारणाय नमः।
258) ॐ प्रकृतेः परस्मै नमः।
259) ॐ भाग्यदाय नमः।
260) ॐ निर्मलाय नमः।
261) ॐ नेत्रे नमः।
262) ॐ पुच्छलङ्काविदाहकाय नमः।
263) ॐ पुच्छबद्धयातुधानाय नमः।
264) ॐ यातुधानरिपुप्रियाय नमः।
265) ॐ छायापहारिणे नमः।
266) ॐ भूतेशाय नमः।
267) ॐ लोकेशाय नमः।
268) ॐ सद्गतिप्रदाय नमः।
269) ॐ प्लवङ्गमेश्वराय नमः।
270) ॐ क्रोधाय नमः।
271) ॐ क्रोधसंरक्तलोचनाय नमः।
272) ॐ सौम्याय नमः।
273) ॐ गुरवे नमः।
274) ॐ काव्यकर्त्रे नमः।
275) ॐ भक्तानां वरप्रदाय नमः।
276) ॐ भक्तानुकम्पिने नमः।
277) ॐ विश्वेशाय नमः।
278) ॐ पुरुहूताय नमः।
279) ॐ पुरन्दराय नमः।
280) ॐ क्रोधहर्त्रे नमः।
281) ॐ तमोहर्त्रे नमः।
282) ॐ भक्ताभयवरप्रदाय नमः।
283) ॐ अग्नये नमः।
284) ॐ विभावसवे नमः।
285) ॐ भास्वते नमः।
286) ॐ यमाय नमः।
287) ॐ निर्ॠतये नमः।
288) ॐ वरुणाय नमः।
289) ॐ वायुगतिमते नमः।
290) ॐ वायवे नमः।
291) ॐ कौबेराय नमः।
292) ॐ ईश्वराय नमः।
293) ॐ रवये नमः।
294) ॐ चन्द्राय नमः।
295) ॐ कुजाय नमः।
296) ॐ सौम्याय नमः।
297) ॐ गुरवे नमः।
298) ॐ काव्याय नमः।
299) ॐ शनैश्चराय नमः।
300) ॐ राहवे नमः।
301) ॐ केतवे नमः।
302) ॐ मरुते नमः।
303) ॐ होत्रे नमः।
304) ॐ दात्रे नमः।
305) ॐ हर्त्रे नमः।
306) ॐ समीरजाय नमः।
307) ॐ मशकीकृतदेवारये नमः।
308) ॐ दैत्यारये नमः।
309) ॐ मधुसूदनाय नमः।
310) ॐ कामाय नमः।
311) ॐ कपये नमः।
312) ॐ कामपालाय नमः।
313) ॐ कपिलाय नमः।
314) ॐ विश्वजीवनाय नमः।
315) ॐ भागीरथीपदाम्भोजाय नमः।
316) ॐ सेतुबन्धविशारदाय नमः।
317) ॐ स्वाहायै नमः।
318) ॐ स्वधायै नमः।
319) ॐ हविषे नमः।
320) ॐ कव्याय नमः।
321) ॐ हव्यवाहप्रकाशकाय नमः।
322) ॐ स्वप्रकाशाय नमः।
323) ॐ महावीराय नमः।
324) ॐ लघवे नमः।
325) ॐ ऊर्जितविक्रमाय नमः।
326) ॐ उड्डीनोड्डीनगतिमते नमः।
327) ॐ सद्गतये नमः।
328) ॐ पुरुषोत्तमाय नमः।
329) ॐ जगदात्मने नमः।
330) ॐ जगद्योनये नमः।
331) ॐ जगदन्ताय नमः।
332) ॐ अनन्तकाय नमः।
333) ॐ विपाप्मने नमः।
334) ॐ निष्कलङ्काय नमः।
335) ॐ महते नमः।
336) ॐ महदहङ्कृतये नमः।
337) ॐ खाय नमः।
338) ॐ वायवे नमः।
339) ॐ पृथिव्यै नमः।
340) ॐ अद्भ्यो नमः।
341) ॐ वह्नये नमः।
342) ॐ दिक्पालाय नमः।
343) ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः।
344) ॐ क्षेत्रहर्त्रे नमः।
345) ॐ पल्वलीकृतसागराय नमः।
346) ॐ हिरण्मयाय नमः।
347) ॐ पुराणाय नमः।
348) ॐ खेचराय नमः।
349) ॐ भूचराय नमः।
350) ॐ अमराय नमः।
351) ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
352) ॐ सूत्रात्मने नमः।
353) ॐ राजराजाय नमः।
354) ॐ विशाम्पतये नमः।
355) ॐ वेदान्तवेद्याय नमः।
356) ॐ उद्गीथाय नमः।
357) ॐ वेदवेदाङ्गपारगाय नमः।
358) ॐ प्रतिग्रामस्थितये नमः।
359) ॐ सद्यः स्फूर्तिदात्रे नमः।
360) ॐ गुणाकराय नमः।
361) ॐ नक्षत्रमालिने नमः।
362) ॐ भूतात्मने नमः।
363) ॐ सुरभये नमः।
364) ॐ कल्पपादपाय नमः।
365) ॐ चिन्तामणये नमः।
366) ॐ गुणनिधये नमः।
367) ॐ प्रजाधाराय नमः।
368) ॐ अनुत्तमाय नमः।
369) ॐ पुण्यश्लोकाय नमः।
370) ॐ पुरारातये नमः।
371) ॐ ज्योतिष्मते नमः।
372) ॐ शर्वरीपतये नमः।
373) ॐ किल्किलारावसन्त्रस्तभूतप्रेतपिशाचकाय नमः।
374) ॐ ऋणत्रयहराय नमः।
375) ॐ सूक्ष्माय नमः।
376) ॐ स्थूलाय नमः।
377) ॐ सर्वगतये नमः।
378) ॐ पुंसे नमः।
379) ॐ अपस्मारहराय नमः।
380) ॐ स्मर्त्रे नमः।
381) ॐ श्रुतये नमः।
382) ॐ गाथायै नमः।
383) ॐ स्मृतये नमः।
384) ॐ मनवे नमः।
385) ॐ स्वर्गद्वाराय नमः।
386) ॐ प्रजाद्वाराय नमः।
387) ॐ मोक्षद्वाराय नमः।
388) ॐ यतीश्वराय नमः।
389) ॐ नादरूपायx नमः।
390) ॐ परस्मै ब्रह्मणे नमः।
391) ॐ ब्रह्मणे नमः।
392) ॐ ब्रह्मपुरातनाय नमः।
393) ॐ एकस्मै नमः।
394) ॐ अनेकाय नमः।
395) ॐ जनाय नमः।
396) ॐ शुक्लाय नमः।
397) ॐ स्वयंज्योतिषे नमः।
398) ॐ अनाकुलाय नमः।
399) ॐ ज्योतिर्ज्योतिषे नमः।
400) ॐ अनादये नमः।
401) ॐ सात्त्विकाय नमः।
402) ॐ राजसाय नमः।
403) ॐ तमाय नमः।
404) ॐ तमोहर्त्रे नमः।
405) ॐ निरालम्बाय नमः।
406) ॐ निराकाराय नमः।
407) ॐ गुणाकराय नमः।
408) ॐ गुणाश्रयाय नमः।
409) ॐ गुणमयाय नमः।
410) ॐ बृहत्कर्मणे नमः।
411) ॐ बृहद्यशसे नमः।
412) ॐ बृहद्धनवे नमः।
413) ॐ बृहत्पादाय नमः।
414) ॐ बृहन्मूर्ध्ने नमः।
415) ॐ बृहत्स्वनाय नमः।
416) ॐ बृहत्कर्णाय नमः।
417) ॐ बृहन्नासाय नमः।
418) ॐ बृहद्बाहवे नमः।
419) ॐ बृहत्तनवे नमः।
420) ॐ बृहज्जानवे नमः।
421) ॐ बृहत्कार्याय नमः।
422) ॐ बृहत्पुच्छाय नमः।
423) ॐ बृहत्कराय नमः।
424) ॐ बृहद्गतये नमः।
425) ॐ बृहत्सेव्याय नमः।
426) ॐ बृहल्लोकफलप्रदाय नमः।
427) ॐ बृहच्छक्तये नमः।
428) ॐ बृहद्वाञ्छाफलदाय नमः।
429) ॐ बृहदीश्वराय नमः।
430) ॐ बृहल्लोकनुताय नमः।
431) ॐ द्रष्ट्रे नमः।
432) ॐ विद्यादात्रे नमः।
433) ॐ जगद्गुरवे नमः।
434) ॐ देवाचार्याय नमः।
435) ॐ सत्यवादिने नमः।
436) ॐ ब्रह्मवादिने नमः।
437) ॐ कलाधराय नमः।
438) ॐ सप्तपातालगामिने नमः।
439) ॐ मलयाचलसंश्रयाय नमः।
440) ॐ उत्तराशास्थिताय नमः।
441) ॐ श्रीदाय नमः।
442) ॐ दिव्यौषधिवशाय नमः।
443) ॐ खगाय नमः।
444) ॐ शाखामृगाय नमः।
445) ॐ कपीन्द्राय नमः।
446) ॐ पुराणश्रुतिचञ्चुराय नमः।
447) ॐ चतुरब्राह्मणाय नमः।
448) ॐ योगिने नमः।
449) ॐ योगगम्याय नमः।
450) ॐ परस्मै नमः।
451) ॐ अवरस्मै नमः।
452) ॐ अनादिनिधनाय नमः।
453) ॐ व्यासाय नमः।
454) ॐ वैकुण्ठाय नमः।
455) ॐ पृथिवीपतये नमः।
456) ॐ अपराजिताय नमः।
457) ॐ जितारातये नमः।
458) ॐ सदानन्दाय नमः।
459) ॐ दयायुताय नमः।
460) ॐ गोपालाय नमः।
461) ॐ गोपतये नमः।
462) ॐ गोप्त्रे नमः।
463) ॐ कलिकालपराशराय नमः।
464) ॐ मनोवेगिने नमः।
465) ॐ सदायोगिने नमः।
466) ॐ संसारभयनाशनाय नमः।
467) ॐ तत्त्वदात्रे नमः।
468) ॐ तत्त्वज्ञाय नमः।
469) ॐ तत्त्वाय नमः।
470) ॐ तत्त्वप्रकाशकाय नमः।
471) ॐ शुद्धाय नमः।
472) ॐ बुद्धाय नमः।
473) ॐ नित्यमुक्ताय नमः।
474) ॐ भक्तराजाय नमः।
475) ॐ जयद्रथाय नमः।
476) ॐ प्रलयाय नमः।
477) ॐ अमितमायाय नमः।
478) ॐ मायातीताय नमः।
479) ॐ विमत्सराय नमः।
480) ॐ मायाभर्जितरक्षसे नमः।
481) ॐ मायानिर्मितविष्टपाय नमः।
482) ॐ मायाश्रयाय नमः।
483) ॐ निर्लेपाय नमः।
484) ॐ मायानिर्वर्तकाय नमः।
485) ॐ सुखाय नमः।
486) ॐ सुखिने नमः।
487) ॐ सुखप्रदाय नमः।
488) ॐ नागाय नमः।
489) ॐ महेशकृतसंस्तवाय नमः।
490) ॐ महेश्वराय नमः।
491) ॐ सत्यसन्धाय नमः।
492) ॐ शरभाय नमः।
493) ॐ कलिपावनाय नमः।
494) ॐ सहस्रकन्धरबलविध्वंसनविचक्षणाय नमः।
495) ॐ सहस्रबाहवे नमः।
496) ॐ सहजाय नमः।
497) ॐ द्विबाहवे नमः।
498) ॐ द्विभुजाय नमः।
499) ॐ अमराय नमः।
500) ॐ चतुर्भुजाय नमः।
501) ॐ दशभुजाय नमः।
502) ॐ हयग्रीवाय नमः।
503) ॐ खगाननाय नमः।
504) ॐ कपिवक्त्राय नमः।
505) ॐ कपिपतये नमः।
506) ॐ नरसिंहाय नमः।
507) ॐ महाद्युतये नमः।
508) ॐ भीषणाय नमः।
509) ॐ भावगाय नमः।
510) ॐ वन्द्याय नमः।
511) ॐ वराहाय नमः।
512) ॐ वायुरूपधृषे नमः।
513) ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः।
514) ॐ पराजितदशाननाय नमः।
515) ॐ पारिजातनिवासिने नमः।
516) ॐ वटवे नमः।
517) ॐ वचनकोविदाय नमः।
518) ॐ सुरसास्यविनिर्मुक्ताय नमः।
519) ॐ सिंहिकाप्राणहारकाय नमः।
520) ॐ लङ्कालङ्कारविध्वंसिने नमः।
521) ॐ वृषदंशकरूपधृषे नमः।
522) ॐ रात्रिसंचारकुशलाय नमः।
523) ॐ रात्रिंचरगृहाग्निदाय नमः।
524) ॐ किङ्करान्तकराय नमः।
525) ॐ जम्बुमालिहन्त्रे नमः।
526) ॐ उग्ररूपधृषे नमः।
527) ॐ आकाशचारिणे नमः।
528) ॐ हरिगाय नमः।
529) ॐ मेघनादरणोत्सुकाय नमः।
530) ॐ मेघगम्भीरनिनदाय नमः।
531) ॐ महारावणकुलान्तकाय नमः।
532) ॐ कालनेमिप्राणहारिणे नमः।
533) ॐ मकरीशापमोक्षदाय नमः।
534) ॐ रसाय नमः।
535) ॐ रसज्ञाय नमः।
536) ॐ सम्मानाय नमः।
537) ॐ रूपाय नमः।
538) ॐ चक्षुषे नमः।
539) ॐ श्रुतये नमः।
540) ॐ वचसे नमः।
541) ॐ घ्राणाय नमः।
542) ॐ गन्धाय नमः।
543) ॐ स्पर्शनाय नमः।
544) ॐ स्पर्शाय नमः।
545) ॐ अहङ्कारमानगाय नमः।
546) ॐ नेतिनेतीतिगम्याय नमः।
547) ॐ वैकुण्ठभजनप्रियाय नमः।
548) ॐ गिरीशाय नमः।
549) ॐ गिरिजाकान्ताय नमः।
550) ॐ दुर्वाससे नमः।
551) ॐ कवये नमः।
552) ॐ अङ्गिरसे नमः।
553) ॐ भृगवे नमः।
554) ॐ वसिष्ठाय नमः।
555) ॐ च्यवनाय नमः।
556) ॐ नारदाय नमः।
557) ॐ तुम्बराय नमः।
558) ॐ अमलाय नमः।
559) ॐ विश्वक्षेत्राय नमः।
560) ॐ विश्वबीजाय नमः।
561) ॐ विश्वनेत्राय नमः।
562) ॐ विश्वपाय नमः।
563) ॐ याजकाय नमः।
564) ॐ यजमानाय नमः।
565) ॐ पावकाय नमः।
566) ॐ पितृभ्यो नमः।
567) ॐ श्रद्धायै नमः।
568) ॐ बुद्धयै नमः।
569) ॐ क्षमायै नमः।
570) ॐ तन्द्रायै नमः।
571) ॐ मन्त्राय नमः।
572) ॐ मन्त्रयित्रे नमः।
573) ॐ स्वराय नमः।
574) ॐ राजेन्द्राय नमः।
575) ॐ भूपतये नमः।
576) ॐ रुण्डमालिने नमः।
577) ॐ संसारसारथये नमः।
578) ॐ नित्यसम्पूर्णकामाय नमः।
579) ॐ भक्तकामदुहे नमः।
580) ॐ उत्तमाय नमः।
581) ॐ गणपाय नमः।
582) ॐ केशवाय नमः।
583) ॐ भ्रात्रे नमः।
584) ॐ पित्रे नमः।
585) ॐ मात्रे नमः।
586) ॐ मारुतये नमः।
587) ॐ सहस्रमूर्ध्ने नमः।
588) ॐ अनेकास्याय नमः।
589) ॐ सहस्राक्षाय नमः।
590) ॐ सहस्रपादे नमः।
591) ॐ कामजिते नमः।
592) ॐ कामदहनाय नमः।
593) ॐ कामाय नमः।
594) ॐ कामफलप्रदाय नमः।
595) ॐ मुद्रापहारिणे नमः।
596) ॐ रक्षोघ्नाय नमः।
597) ॐ क्षितिभारहराय नमः।
598) ॐ बलाय नमः।
599) ॐ नखदंष्ट्रायुधाय नमः।
600) ॐ विष्णवे नमः।
601) ॐ भक्ताभयवरप्रदाय नमः।
602) ॐ दर्पघ्ने नमः।
603) ॐ दर्पदाय नमः।
604) ॐ दंष्ट्राशतमूर्तये नमः।
605) ॐ अमूर्तिमते नमः।
606) ॐ महानिधये नमः।
607) ॐ महाभागाय नमः।
608) ॐ महाभर्गाय नमः।
609) ॐ महार्द्धिदाय नमः।
610) ॐ महाकाराय नमः।
611) ॐ महायोगिने नमः।
612) ॐ महातेजसे नमः।
613) ॐ महाद्युतये नमः।
614) ॐ महासनाय नमः।
615) ॐ महानादाय नमः।
616) ॐ महामन्त्राय नमः।
617) ॐ महामतये नमः।
618) ॐ महागमाय नमः।
619) ॐ महोदाराय नमः।
620) ॐ महादेवात्मकाय नमः।
621) ॐ विभवे नमः।
622) ॐ रौद्रकर्मणे नमः।
623) ॐ क्रूरकर्मणे नमः।
624) ॐ रत्नाभाय नमः।
625) ॐ कृतागमाय नमः।
626) ॐ अम्भोधिलङ्घनाय नमः।
627) ॐ सिंहाय नमः।
628) ॐ सत्यधर्मप्रमोदनाय नमः।
629) ॐ जितामित्राय नमः।
630) ॐ जयाय नमः।
631) ॐ सोमाय नमः।
632) ॐ विजयाय नमः।
633) ॐ वायुनन्दनाय नमः।
634) ॐ जीवदात्रे नमः।
635) ॐ सहस्रांशवे नमः।
636) ॐ मुकुन्दाय नमः।
637) ॐ भूरिदक्षिणाय नमः।
638) ॐ सिद्धार्थाय नमः।
639) ॐ सिद्धिदाय नमः।
640) ॐ सिद्धसङ्कल्पाय नमः।
641) ॐ सिद्धिहेतुकाय नमः।
642) ॐ सप्तपातालचरणाय नमः।
643) ॐ सप्तर्षिगणवन्दिताय नमः।
644) ॐ सप्ताब्धिलङ्घनाय नमः।
645) ॐ वीराय नमः।
646) ॐ सप्तद्वीपोरुमण्डलाय नमः।
647) ॐ सप्ताङ्गराज्यसुखदाय नमः।
648) ॐ सप्तमातृनिषेविताय नमः।
649) ॐ सप्तस्वर्लोकमुकुटाय नमः।
650) ॐ सप्तहोत्रे नमः।
651) ॐ स्वाराश्रयाय नमः।
652) ॐ सप्तच्छन्दोनिधये नमः।
653) ॐ सप्तच्छन्दसे नमः।
654) ॐ सप्तजनाश्रयाय नमः।
655) ॐ सप्तसामोपगीताय नमः।
656) ॐ सप्तपातालसंश्रयाय नमः।
657) ॐ मेधादाय नमः।
658) ॐ कीर्तिदाय नमः।
659) ॐ शोकहारिणे नमः।
660) ॐ दौर्भाग्यनाशनाय नमः।
661) ॐ सर्वरक्षाकराय नमः।
662) ॐ गर्भदोषघ्ने नमः।
663) ॐ पुत्रपौत्रदाय नमः।
664) ॐ प्रतिवादिमुखस्तम्भाय नमः।
665) ॐ रुष्टचित्तप्रसादनाय नमः।
666) ॐ पराभिचारशमनाय नमः।
667) ॐ दुःखघ्ने नमः।
668) ॐ बन्धमोक्षदाय नमः।
669) ॐ नवद्वारपुराधाराय नमः।
670) ॐ नवद्वारनिकेतनाय नमः।
671) ॐ नरनारायणस्तुत्याय नमः।
672) ॐ नवनाथमहेश्वराय नमः।
673) ॐ मेखलिने नमः।
674) ॐ कवचिने नमः।
675) ॐ खड्गिने नमः।
676) ॐ भ्राजिष्णवे नमः।
677) ॐ जिष्णुसारथये नमः।
678) ॐ बहुयोजनविस्तीर्णपुच्छाय नमः।
679) ॐ पुच्छहतासुराय नमः।
680) ॐ दुष्टग्रहनिहन्त्रे नमः।
681) ॐ पिशाचग्रहघातकाय नमः।
682) ॐ बालग्रहविनाशिने नमः।
683) ॐ धर्मनेत्रे नमः।
684) ॐ कृपाकराय नमः।
685) ॐ उग्रकृत्याय नमः।
686) ॐ उग्रवेगाय नमः।
687) ॐ उग्रनेत्राय नमः।
688) ॐ शतक्रतवे नमः।
689) ॐ शतमन्युनुताय नमः।
690) ॐ स्तुत्याय नमः।
691) ॐ स्तुतये नमः।
692) ॐ स्तोत्रे नमः।
693) ॐ महाबलाय नमः।
694) ॐ समग्रगुणशालिने नमः।
695) ॐ व्यग्राय नमः।
696) ॐ रक्षोविनाशकाय नमः।
697) ॐ रक्षोऽग्निदाहाय नमः।
698) ॐ ब्रह्मेशाय नमः।
699) ॐ श्रीधराय नमः।
700) ॐ भक्तवत्सलाय नमः।
701) ॐ मेघनादाय नमः।
702) ॐ मेघरूपाय नमः।
703) ॐ मेघवृष्टिनिवारकाय नमः।
704) ॐ मेघजीवनहेतवे नमः।
705) ॐ मेघश्यामाय नमः।
706) ॐ परात्मकाय नमः।
707) ॐ समीरतनयाय नमः।
708) ॐ योद्ध्रे नमः।
709) ॐ नृत्यविद्याविशारदाय नमः।
710) ॐ अमोघाय नमः।
711) ॐ अमोघदृष्टये नमः।
712) ॐ इष्टदाय नमः।
713) ॐ अरिष्टनाशनाय नमः।
714) ॐ अर्थाय नमः।
715) ॐ अनर्थापहारिणे नमः।
716) ॐ समर्थाय नमः।
717) ॐ रामसेवकाय नमः।
718) ॐ अर्थिवन्द्याय नमः।
719) ॐ असुरारातये नमः।
720) ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः।
721) ॐ आत्मभुवे नमः।
722) ॐ सङ्कर्षणाय नमः।
723) ॐ विशुद्धात्मने नमः।
724) ॐ विद्याराशये नमः।
725) ॐ सुरेश्वराय नमः।
726) ॐ अचलोद्धारकाय नमः।
727) ॐ नित्याय नमः।
728) ॐ सेतुकृते नमः।
729) ॐ रामसारथये नमः।
730) ॐ आनन्दाय नमः।
731) ॐ परमानन्दाय नमः।
732) ॐ मत्स्याय नमः।
733) ॐ कूर्माय नमः।
734) ॐ निराश्रयाय नमः।
735) ॐ वाराहाय नमः।
736) ॐ नारसिंहाय नमः।
737) ॐ वामनाय नमः।
738) ॐ जमदग्निजाय नमः।
739) ॐ रामाय नमः।
740) ॐ कृष्णाय नमः।
741) ॐ शिवाय नमः।
742) ॐ बुद्धाय नमः।
743) ॐ कल्किने नमः।
744) ॐ रामाश्रयाय नमः।
745) ॐ हरये नमः।
746) ॐ नन्दिने नमः।
747) ॐ भृङ्गिणे नमः।
748) ॐ चण्डिने नमः।
749) ॐ गणेशाय नमः।
750) ॐ गणसेविताय नमः।
751) ॐ कर्माध्यक्षाय नमः।
752) ॐ सुराध्यक्षाय नमः।
753) ॐ विश्रामाय नमः।
754) ॐ जगतीपतये नमः।
755) ॐ जगन्नाथाय नमः।
756) ॐ कपीशाय नमः।
757) ॐ सर्वावासाय नमः।
758) ॐ सदाश्रयाय नमः।
759) ॐ सुग्रीवादिस्तुताय नमः।
760) ॐ दान्ताय नमः।
761) ॐ सर्वकर्मणे नमः।
762) ॐ प्लवङ्गमाय नमः।
763) ॐ नखदारितरक्षसे नमः।
764) ॐ नखयुद्धविशारदाय नमः।
765) ॐ कुशलाय नमः।
766) ॐ सुधनाय नमः।
767) ॐ शेषाय नमः।
768) ॐ वासुकये नमः।
769) ॐ तक्षकाय नमः।
770) ॐ स्वर्णवर्णाय नमः।
771) ॐ बलाढ्याय नमः।
772) ॐ पुरुजेत्रे नमः।
773) ॐ अघनाशनाय नमः।
774) ॐ कैवल्यरूपाय नमः।
775) ॐ कैवल्याय नमः।
776) ॐ गरुडाय नमः।
777) ॐ पन्नगोरगाय नमः।
778) ॐ किल्किल् रावहतारातये नमः।
779) ॐ गर्वपर्वतभेदनाय नमः।
780) ॐ वज्राङ्गाय नमः।
781) ॐ वज्रदंष्ट्राय नमः।
782) ॐ भक्तवज्रनिवारकाय नमः।
783) ॐ नखायुधाय नमः।
784) ॐ मणिग्रीवाय नमः।
785) ॐ ज्वालामालिने नमः।
786) ॐ भास्कराय नमः।
787) ॐ प्रौढप्रतापाय नमः।
788) ॐ तपनाय नमः।
789) ॐ भक्ततापनिवारकाय नमः।
790) ॐ शरणाय नमः।
791) ॐ जीवनाय नमः।
792) ॐ भोक्त्रे नमः।
793) ॐ नानाचेष्टाय नमः।
794) ॐ अचञ्चलाय नमः।
795) ॐ स्वस्तिमते नमः।
796) ॐ स्वास्तिदाय नमः।
797) ॐ दुःखशातनाय नमः।
798) ॐ पवनात्मजाय नमः।
799) ॐ पावनाय नमः।
800) ॐ पवनाय नमः।
801) ॐ कान्ताय नमः।
802) ॐ भक्तागःसहनाय नमः।
803) ॐ बलिने नमः।
804) ॐ मेघनादरिपवे नमः।
805) ॐ मेघनादसंहतराक्षसाय नमः।
806) ॐ क्षराय नमः।
807) ॐ अक्षराय नमः।
808) ॐ विनीतात्मने नमः।
809) ॐ वानरेशाय नमः।
810) ॐ सताङ्गतये नमः।
811) ॐ श्रीकण्ठाय नमः।
812) ॐ शितिकण्ठाय नमः।
813) ॐ सहायाय नमः।
814) ॐ सहनायकाय नमः।
815) ॐ अस्थूलाय नमः।
816) ॐ अनणवे नमः।
817) ॐ भर्गाय नमः।
818) ॐ दिव्याय नमः।
819) ॐ संसृतिनाशनाय नमः।
820) ॐ अध्यात्मविद्यासाराय नमः।
821) ॐ अध्यात्मकुशलाय नमः।
822) ॐ सुधिये नमः।
823) ॐ अकल्मषाय नमः।
824) ॐ सत्यहेतवे नमः।
825) ॐ सत्यदाय नमः।
826) ॐ सत्यगोचराय नमः।
827) ॐ सत्यगर्भाय नमः।
828) ॐ सत्यरूपाय नमः।
829) ॐ सत्याय नमः।
830) ॐ सत्यपराक्रमाय नमः।
831) ॐ अञ्जनाप्राणलिङ्गाय नमः।
832) ॐ वायुवंशोद्भवाय नमः।
833) ॐ शुभाय नमः।
834) ॐ भद्ररूपाय नमः।
835) ॐ रुद्ररूपाय नमः।
836) ॐ सुरूपाय नमः।
837) ॐ चित्ररूपधृषे नमः।
838) ॐ मैनाकवन्दिताय नमः।
839) ॐ सूक्ष्मदर्शनाय नमः।
840) ॐ विजयाय नमः।
841) ॐ जयाय नमः।
842) ॐ क्रान्तदिङ्मण्डलाय नमः।
843) ॐ रुद्राय नमः।
844) ॐ प्रकटीकृतविक्रमाय नमः।
845) ॐ कम्बुकण्ठाय नमः।
846) ॐ प्रसन्नात्मने नमः।
847) ॐ ह्रस्वनासाय नमः।
848) ॐ वृकोदराय नमः।
849) ॐ लम्बौष्ठाय नमः।
850) ॐ कुण्डलिने नमः।
851) ॐ चित्रमालिने नमः।
852) ॐ योगविदां वराय नमः।
853) ॐ विपश्चिते नमः।
854) ॐ कवये नमः।
855) ॐ आनन्दविग्रहाय नमः।
856) ॐ अनल्पशासनाय नमः।
857) ॐ फाल्गुनीसूनवे नमः।
858) ॐ अव्यग्राय नमः।
859) ॐ योगात्मने नमः।
860) ॐ योगतत्पराय नमः।
861) ॐ योगविदे नमः।
862) ॐ योगकर्त्रे नमः।
863) ॐ योगयोनये नमः।
864) ॐ दिगम्बराय नमः।
865) ॐ अकारादिहकारान्तवर्णनिर्मितविग्रहाय नमः।
866) ॐ उलूखलमुखाय नमः।
867) ॐ सिद्धसंस्तुताय नमः।
868) ॐ प्रमथेश्वराय नमः।
869) ॐ श्लिष्टजङ्घाय नमः।
870) ॐ श्लिष्टजानवे नमः।
871) ॐ श्लिष्टपाणये नमः।
872) ॐ शिखाधराय नमः।
873) ॐ सुशर्मणे नमः।
874) ॐ अमितशर्मणे नमः।
875) ॐ नारायणपरायणाय नमः।
876) ॐ जिष्णवे नमः।
877) ॐ भविष्णवे नमः।
878) ॐ रोचिष्णवे नमः।
879) ॐ ग्रसिष्णवे नमः।
880) ॐ स्थाणवे नमः।
881) ॐ हरिरुद्रानुसेकाय नमः।
882) ॐ कम्पनाय नमः।
883) ॐ भूमिकम्पनाय नमः।
884) ॐ गुणप्रवाहाय नमः।
885) ॐ सूत्रात्मने नमः।
886) ॐ वीतरागस्तुतिप्रियाय नमः।
887) ॐ नागकन्याभयध्वंसिने नमः।
888) ॐ रुक्मवर्णाय नमः।
889) ॐ कपालभृते नमः।
890) ॐ अनाकुलाय नमः।
891) ॐ भवोपायाय नमः।
892) ॐ अनपायाय नमः।
893) ॐ वेदपारगाय नमः।
894) ॐ अक्षराय नमः।
895) ॐ पुरुषाय नमः।
896) ॐ लोकनाथाय नमः।
897) ॐ ऋक्षःप्रभवे नमः।
898) ॐ दृढाय नमः।
899) ॐ अष्टाङ्गयोग फलभुजे नमः।
900) ॐ सत्यसन्धाय नमः।
901) ॐ पुरुष्टुताय नमः।
902) ॐ श्मशानस्थाननिलयाय नमः।
903) ॐ प्रेतविद्रावणक्षमाय नमः।
904) ॐ पञ्चाक्षरपराय नमः।
905) ॐ पञ्चमातृकाय नमः।
906) ॐ रञ्जनध़्वजाय नमः।
907) ॐ योगिनीवृन्दवन्द्यश्रियै नमः।
908) ॐ शत्रुघ्नाय नमः।
909) ॐ अनन्तविक्रमाय नमः।
910) ॐ ब्रह्मचारिणे नमः।
911) ॐ इन्द्रियरिपवे नमः।
912) ॐ धृतदण्डाय नमः।
913) ॐ दशात्मकाय नमः।
914) ॐ अप्रपञ्चाय नमः।
915) ॐ सदाचाराय नमः।
916) ॐ शूरसेनाविदारकाय नमः।
917) ॐ वृद्धाय नमः।
918) ॐ प्रमोदाय नमः।
919) ॐ आनन्दाय नमः।
920) ॐ सप्तद्वीपपतिन्धराय नमः।
921) ॐ नवद्वारपुराधाराय नमः।
922) ॐ प्रत्यग्राय नमः।
923) ॐ सामगायकाय नमः।
924) ॐ षट्चक्रधान्मे नमः।
925) ॐ स्वर्लोकाभयकृते नमः।
926) ॐ मानदाय नमः।
927) ॐ मदाय नमः।
928) ॐ सर्ववश्यकराय नमः।
929) ॐ शक्तये नमः।
930) ॐ अनन्ताय नमः।
931) ॐ अनन्तमङ्गलाय नमः।
932) ॐ अष्टमूर्तये नमः।
933) ॐ नयोपेताय नमः।
934) ॐ विरूपाय नमः।
935) ॐ सुरसुन्दराय नमः।
936) ॐ धूमकेतवे नमः।
937) ॐ महाकेतवे नमः।
938) ॐ सत्यकेतवे नमः।
939) ॐ महारथाय नमः।
940) ॐ नन्दिप्रियाय नमः।
941) ॐ स्वतन्त्राय नमः।
942) ॐ मेखलिने नमः।
943) ॐ डमरुप्रियाय नमः।
944) ॐ लौहाङ्गाय नमः।
945) ॐ सर्वविदे नमः।
946) ॐ धन्विने नमः।
947) ॐ खण्डलाय नमः।
948) ॐ शर्वाय नमः।
949) ॐ ईश्वराय नमः।
950) ॐ फलभुजे नमः।
951) ॐ फलहस्ताय नमः।
952) ॐ सर्वकर्मफलप्रदाय नमः।
953) ॐ धर्माध्यक्षाय नमः।
954) ॐ धर्मपालाय नमः।
955) ॐ धर्माय नमः।
956) ॐ धर्मप्रदाय नमः।
957) ॐ अर्थदाय नमः।
958) ॐ पञ्चविंशतितत्त्वज्ञाय नमः।
959) ॐ तारकाय नमः।
960) ॐ ब्रह्मतत्पराय नमः।
961) ॐ त्रिमार्गवसतये नमः।
962) ॐ भीमाय नमः।
963) ॐ सर्वदुःखनिबर्हणाय नमः।
964) ॐ ऊर्जस्वते नमः।
965) ॐ निष्कलाय नमः।
966) ॐ शूलिने नमः।
967) ॐ मौलिने नमः।
968) ॐ गर्जन्निशाचराय नमः।
969) ॐ रक्ताम्बरधराय नमः।
970) ॐ रक्ताय नमः।
971) ॐ रक्तमाल्याय नमः।
972) ॐ विभूषणाय नमः।
973) ॐ वनमालिने नमः।
974) ॐ शुभाङ्गाय नमः।
975) ॐ श्वेताय नमः।
976) ॐ श्वेताम्बराय नमः।
977) ॐ यूने नमः।
978) ॐ जयाय नमः।
979) ॐ अजयपरीवाराय नमः।
980) ॐ सहस्रवदनाय नमः।
981) ॐ कपये नमः।
982) ॐ शाकिनीडाकिनीयक्षरक्षोभूतप्रभञ्जकाय नमः।
983) ॐ सद्योजाताय नमः।
984) ॐ कामगतये नमः।
985) ॐ ज्ञाययYटीनमूर्तये नमः।
986) ॐ यशस्कराय नमः।
987) ॐ शम्भुतेजसे नमः।
988) ॐ सार्वभौमाय नमः।
989) ॐ विष्णुभक्ताय नमः।
990) ॐ प्लवङ्गमाय नमः।
991) ॐ चतुर्नवतिमन्त्रज्ञाय नमः।
992) ॐ पौलस्त्यबलदर्पघ्ने नमः।
993) ॐ सर्वलक्ष्मीप्रदाय नमः।
994) ॐ श्रीमते नमः।
995) ॐ अङ्गदप्रियाय नमः।
996) ॐ ईडिताय नमः।
997) ॐ स्मृतिबीजाय नमः।
998) ॐ सुरेशानाय नमः।
999) ॐ संसारभयनाशनाय नमः।
1000) ॐ उत्तमाय नमः।
1001) ॐ श्रीपरीवाराय नमः।
1002) ॐ श्रिताय नमः।
1003) ॐ रुद्राय नमः।
1004) ॐ कामदुहे नमः।
।। ॐ महावीर हनुमान की जय।।
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